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१४ आश्वासः
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शाजिनेन च न दृष्टा हृदयेष्टमभाषिष्ट । भट्टतनिशम्य 'कथमेतन्मनोपमयचा संपथमस्मन्मनोमय मव्यर्थप्रार्थनं करिष्यामि इत्याकुलमनः परिन्यदयात्रतन्त्रानुपदः सातपसूत्रपदत्राण" स्तद्गवेषण विषणापरायणः सत्रितस्ततोवजन जलवाहिनी नाम नदीतटनिकट निविष्टप्रसनने महति कालिदासकानने परम तपश्चरणाचरण शुचिशरीरेण निःशेषणवृतमनस्कारेण ' समस्तसस्वस्वरूपनिरूप स्वाध्यायश्वनि सिद्धौर घिसट "बसा पितधनदेवता निकरेण मूर्ति घर्मेण विनेपदेधिके पमित्रेण सुमित्र ेण मुनिनाल कृता लवालवलयमेतद्ब्रह्मस' माहात्म्याचा मूलमाचूर्ण क चूतं समुल्लसल्लवली फगुलु फीतमवलोक्य १४ कट्टा हस्ते कलत्रस्य पिकप्रियप्रसवकस तोली gee ततो भगवतोच थियोषपयोधिमध्यसंनिभायमा नसकलकला कलापरश्ना मंधवणावसरप्रयत्नात्समायातं सहखरकल्प सूर्यथिमा सूर्यचराभिधानानुगत मत्पत्परिभवपरितमा १६ मगोचरं भवान्तरमाकम्पोवीर्णजातिस्मरभाव: स्वप्न
उसका दोहला पूर्ण न होने से उसने वैसी शारीरिक कृशता ( क्षीणता ) प्राप्त की जैसी मूल (जड़) में व्यथित क्षोणता प्राप्त करती है। अतः राजपुरोहित और कुटुम्बी जनों द्वारा विस्तार से पूँछी जाने पर उसने अपना दोहला कह दिया । उक्त बात सुनकर पुरोहित का मन और कुटुम्बोजन व्याकुलित हुए। उसने मन में विचार किया कि मैं झूठे मार्ग का अनुसरण करने वाली व मेरा मन व्यथित ( विशेष दुःखित ) करने वाली इसकी मनोकामना कैसे सफल ( पूर्ण ) करूँ ?
पस्चात् उसने छात्र सम्प्रदाय के संघ-सहित होकर छत्ता धारण किया व जूते पहिने और आम्रफल देखने या खोजने की बुद्धि में यहाँ वहाँ पर्यटन करते हुए उसने 'जलवाहिनी' नाम की नदी के तट के निकटवर्ती, विस्तृत व महान आम्रवन में ऐसा नाम्र वृक्ष देखा, जिसकी क्यारी समूह ऐसे 'सुमित्र' नाम के ऋषि से अकुत थी, जो कि ( आम्रवृक्ष ) प्रस्तुत ऋषि के चारित्र व विद्या के प्रभाव से जड़ से शिखर तक शोभायमान हो रहीं मञ्जरियों व आम्र फलों के गुच्छों से वृद्धिंगत था । जो कि सुमित्र ऋषि ) उत्कृष्ट तपश्चर्या के अनुष्ठान से पवित्र शरीर वाले थे। समस्त द्वादशाङ्ग श्रुत के श्रवण से जिसका चित्त विस्तृत गया था जिसने समस्त प्राणियों के स्वरूप को निरूपण करने वाले स्वाध्याय को ध्वनिरूपी सिद्धीधिको समीपता से वनदेवता समूह को अपने वश में कर लिया था। जो ऐसे प्रतीत होते थे—मानों - मूर्तिमान् धर्म ही है-और जो शिष्यरूपी कमलों को विकसित करने के लिए सूर्य सरीखे थे। इसके बाद उसने उस आम्रवृक्ष से उत्पन्न हुए फलों के गुच्छों को तोड़कर चतुर शिष्य के हाथ अपनी प्रिया के पास भेज दिए ।
इसके बाद उसने जब उक्त ऋषि से जिसको बात्मा में अवधिज्ञानरूप समुद्र के मध्य सन्निधि प्राप्त करने वाले गमस्त कला-समूह रूपी रत्न प्रकट हुए हैं, अपना इस प्रकार पूर्वत्र श्रवण किया, कि 'तू बारहव स्वर्ग में सूर्य नामक विमान में उत्पन्न हुआ, बहुत थोड़े ऐश्वर्य से महित भूतपूर्व सूर्य नामका देव था और मेरे निकट धर्मश्रवण के अवसर पर प्रयत्न पूर्वक आया हुआ था तब उसे पूर्वभव का स्मरण हुआ, गतः उसने
१. प्रपंचेन । २. अस्मन्मनो नातीति अस्मन्मनोमयं दुःखदं । ३. सफलकथं । ४. संप्रदाय मेकापासहितः । ५ छत्रपानसहित महातपत्रेण छत्रेण पदत्राणाम्यामुपानयां वर्तते इति । ६ आनावलोकन । ७. विस्तरणं । ८. आम्रवने । ९. चित्ताभोगंन । १०. समोप ११. कमलसूर्येण ( सुमित्रेण ), वैषिके कम मित्रेण रविणा । १२. स्यादुद्रघर्च व्रताध्ययनः विद्याप्रभावात् । ब्रह्मवर्चसं यतिव्रतविद्या प्रभावाः । १३. मजरी १४. चतुर । १५. आावरंडिका । १६ परिणतं सहितमित्यर्थः ।
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