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पञ्चमं आश्वासः
भगवान् -- सम्यक्त्वज्ञानचारित्रत्रयं मोक्षस्य कारणम् । संसारस्य व *मोमांस्यं मिध्यात्वादिचतुष्टयम् ॥७॥ सम्यक्त्वं भावनामाहुर्युक्तियुक्तेषु वस्तुषु । मोहे सन्देह विभान्ति वणितं ज्ञानमुच्यते ||८ कर्णादाननिमित्तायाः क्रियायाः परमं शमम् । चारित्रोचितचातुर्याश्वाचारित्रसूचि ॥९॥ सम्यक्त्वज्ञानचारित्रविषयं परं मनः । मिम्याएवं त्रिषु भाषते सूरयः सर्वदेविनः ॥ १० ॥
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अत्र बुरागमवासनाविलासिनीवासितचेतसां प्रति कृत लोक मोहोन्मूलनसमयलोतसां सदाचाराचरणचारोचतिनां पश्यादिना मुक्तेादे कार्ययः कः तथाहि 'सकलन कलाप्तप्राप्त मन्त्र तत्रापेक्ष१२ दोन लक्षणा मात्रानुसरणान्मोक्ष:' इति सैद्धान्तवैशेषिकाः, 3 * द्रव्यगुणकर्मसामान्यसमवायान्त्यविशेष्टा
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आचार्य - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यस्वारित्र इन तीनों की प्राप्ति मोक्ष का मार्ग है एवं मिथ्यादर्शन, अविरति कषाय व योग संसार के कारण समझने चाहिए || ७ | युक्ति-सिद्ध पदार्थों ( जीवअजीव आदि नव पदार्थी ) में दृढ श्रद्धा करने को सम्यग्दर्शन कहते हैं और अज्ञान, सन्देह व भ्रान्ति से रहित हुए ज्ञान की 'सम्यग्ज्ञान' कहा जाता है || ८ || महामुनियों ने ज्ञानावरणादि कर्मबंध को कारण मनोयोग, वचतयोग व काययोग तथा कषायरूप पाप कियाओं के त्याग करने को सम्यक्चारित्र कहा है ।। २ ।। सर्ववेत्ता आचार्य, ऐसी मानसिक प्रवृत्ति को, जो कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र को विपरीत करने में तत्पर हैं, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र इन तीन विषयक मिथ्यात्व ( मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान व मिथ्याचारित्र ) कहते हैं ॥ १० ॥
मुक्ति के विषय में अनेक मान्यताएं-- मिध्याशास्त्रों की वासनारूपी कामिनी से वासित चित्तवाले aaraare को, जिनके सिद्धान्तरूपी जल प्रवाह अज्ञानी मनुष्य-समूहरूपी वृक्षों के उखाड़ने में गतिशील हैं एवं जो सदाचार के पालन की चतुराई से दूरवर्ती हैं, मुक्ति के मार्ग में व स्वरूप में अनेक प्रकार की मान्यताएँ हैं ।
१. 'जैसे- 'द्धान्त वैशेषिक' ( वेद को मुख्यता से प्रमाण मानने वाले कणाद ऋषि के अनुयायी ) मानते हैं कि ऐसी दीक्षालक्षण वाली श्रद्धामात्र के अनुसरण से मुक्ति होती है, जिसमें सगुण शिव ( सशरीरपार्वतीकान्त ) व निर्गुण ( परमशिव ) परमगुरु या ईश्वर से प्राप्त हुए मन्त्रों (वैदिक ऋचाओं या वैदिक मन्त्रों, जो कि निरुक्त के अनुसार तीन प्रकार के हैं, परोक्षकृत, प्रत्यक्षकृत व आध्यात्मिक अथवा वेदों का मन्त्र भाग जो ब्राह्मण से भिन्न है ) व तन्त्रों ( उपायों - यज्ञादि कर्मकाण्ड पद्धतियों ) की अपेक्षा ( वाञ्छा ) वर्तमान है ।'
२. तार्किक वैशेषिक मानते हैं कि 'द्रव्य ( पृथिवी, आप, तेज, वायु, आकाश, काल, दिकू, आत्मा और मन ये ९ ), गुण ( रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व,
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विचायें । ९. मिथ्यात्वाविरतिरूपाययोगाः । २ मोहः अज्ञानं । ३. इदं तत्त्ववित्वमिति चलन्तो प्रतिपत्तिः संशयः सन्देहः । ४. अन तत्वापत्रमा भ्रान्तिः । ५. महामुनयः । ६. सम्यक्त्यज्ञानचारित्रेषु मिथ्यादर्शनं मिथ्याज्ञानं मिथ्याचारित्रं चेत्यर्थः ७ अज्ञानिजन । ८. लोका एव वृक्षाः । ९. स्वरूपे । १०. स्वभावाः । ११. पार्वतीपतिः परमशिवश्चैव गुरुस्तस्मात्प्राप्तः । १२. वाष्ट्रमन्त्रतन्त्रादिरुचिरेव । १३. मोक्षं मन्यन्तं ।
★ 'द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायानां पदार्थानां साधर्म्यययम्यां सत्यज्ञानान्निःश्रेयसम् ॥ वैशे० द०१-४ |