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यशस्तिलक चम्पूकाव्ये
चरम शास्त्र अनितले निमान: पर्यागतंरिव त्रिरावभिधानरः । या सोमदेवता विहिता विभूषा वाग्देवता बहतु संप्रति तामनर्थ्याम् ॥ १५४॥
इयता प्रत्येन मया प्रोक्तं चरितं यशोधरनृपस्य । इत उत्तरं तु बध्मे भूतपठितपासकाध्ययनम् ।। १५५ ।। इति सकलता किलो कचूडामणेः श्रीमन्नमिदेवनगवतः शिष्येण सद्योमवद्यगद्यपद्यवथाप र व च क्रय विशिखण्डी भवरणकमलेन श्रीसोमदेवसूरिणा विरचिते यशोबर महाराजचरिते यशस्तिलकापरनाम्ति महाकाव्ये भवभ्रमणवर्णनो नाम धमाश्वासः ।
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तल में डूबे हुए शब्द रूपी रत्नों से, जो कि शास्त्ररूपी समुद्र से श्रीसोमदेव सूरि से निकाले गए हैं, अर्थात् -- प्रकाश या प्रयोग में लाये गये हैं, इसलिए जो ऐसे मालूम पड़ते हैं- मानों प्रस्तुत आचार्य श्री द्वारा नए निर्माण किये गए हैं, सोमदेव सूरि ने जो आभूषण ( यशस्तिलक रूपो रत्नों की हारयष्टि-माला ) निर्मित किया है, उस अमूल्य आभूषण को वाग्देवता – सुकवि-वाणी की अधिष्ठात्री देवी -- धारण करे ।। १५४ ।।
मुझ सोमदेव सूरि ने इसने ग्रन्थ में (पचि आश्वासों में ) यशोधर महाराज का चरित्र कहा । इसके आगे ( ६ आश्वास से ८ आवास तक) द्वादशाङ्ग में उल्लिखित उपासकाव्ययन (श्रावकाचार ) कहूँगा || १५५ ।। इसप्रकार समस्त तार्किक पदर्शन - वेत्ता ) चक्रवर्तियों के चूड़ामणि ( शिरोरत्न या सर्वश्रेष्ठ ) श्रीमदाचार्य नेमिदेव के शिष्य श्रीमत्सोमदेव सूरि द्वारा, जिसके चरण कमला निर्दोष गणन्या विद्याघरों के चक्रवर्तियों के मस्तकों के आभूषण हुए हैं, रखे हुए 'यशोधरचरित' में, जिसका दुसरा नाम 'यशस्तिलक महाकाव्य है', 'भवभ्रमण वर्णन' नाम का पञ्चम आश्वास पूर्ण हुआ ।
इसप्रकार दार्शनिक-बूडामणि श्रीमदम्बादास जी शास्त्रीय श्रीमत्पूज्यनाव आध्यात्मिक सन्त श्री १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसाद जी वर्णी न्यायाचार्य के प्रधान शिष्य, 'नीतिचावयाभूत' के भापाटीकाकार, सम्पादक व प्रकाशक, जैनन्यायतीर्थ, प्राचीन न्यायतीर्थ, काव्यतीर्थ व आयुर्वेद- विशारद एवं महोपदेशकआदि अनेक उपाधि-विभूषित, सागर निवासी परवार जैनजातीय श्रीमत्सुन्दरलाल शास्त्री द्वारा रची श्रीमत्सोमदेव सूरिविरचित 'यशस्तिलक चम्पू महाकान्य' को 'यशस्तिलकदीपिका' नाम की भाषाटीका में यशोधर महाराज का भवभ्रम-वर्णन' नाम
का पञ्चम आश्वास
पूर्ण हुआ ।