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यशस्सिलाई एवं स्वाचरितोचितप्रयोगादिपिनियोगायोरप्याषयोस्तत्र पूर्वभवानुभूतभूमिप्पासे नपनियासे सह संवसतोरेकदा निशान्तनिवासाशयानामन्तःपुरपुरप्रिकालंकारचिकृतकायानां शाम्भलोनाममृतमतिमहादेवीपशनापाशु प्रकाशितगतिफलौना गमनाभिनिवेशबारसप्रसनामुक्तमणिकङ्किणीजालकलकोलाहलेन सजलजलपरध्वनिनेव नपुरनावेन बिनोधमानमानसः सुभपवर्षाभिषस्य सौषस्याधिरोहणावना सप्तमं तलमध्यारूडोऽस्मि ।
तत्र च क्षणमात्रमिव स्थिरवा प्रतिनिवृत्तासु तासु प्रतीपदशिनीष्वहं भूतभवानुभूतभवनभूमिसंभावनाविभूतान्त:करणतया मनाविलम्बमानस्ताममृतमतिमहादेवीं तेन कुन्जेन सह विहितमोहनामवलोक्य प्रवृद्धानषिकोविषयी लोचनः कोपादोपत्रुटस्त्रोटिशरकोल्काजालवर्ष विष्यवस्तुण्डतण्डनः, निमिडावेशवशषिशीयमाणबर्हषिहिलाकालकेतूद्गतिभिः पक्षप्रतिभिः, कोकसावसामविश्रान्तनावमुक्षमार्गोद्गलबुषिरधाराकाण्डताण्डवितसंप्यारागसंततिभिः कातिभिश्च तयोराधरितसुरतमुखान्तरायः, संवापिरिवाश्यानमविषारीरिकया कथाचित्परिवारवारिकया सुप्रतिष्ठेन कपानिदेवलतया कयाचित्तालयन्तेन कयाचित्रकोणपिजरूया कयाचिगुलीगालेन कयाचिक्नुपानया, तथापराभिरपि समुत्साहितसोविचल्लसकवारोराभिरवरोवषिलासिनीभिश्व तेन तेनोपकरणकलापेनातिनिर्दयहचर्य प्राणप्रयाणपन्तजरितकाया, स्त्रियों के मुखरूपी चन्द्रों को कान्तियुक्त करने में पूर्णिमा की रात्रि है, भाग्य से यशोमति महाराज के लिए भेंट कर दिया गया।
__ यशोमति महाराज ने उस कुत्ते को देखकर अपने मन में निम्नप्रकार विचार किया-'ऐसा कुत्ता राजाओं की शिकार के लिए होता है। जो दुबैल मुख वाला व पीत-रत नेत्रोंवाला है। जिसके दोनों कान, कुछ तोक्षण प्रान्त भागवाले हैं। जो दुर्बल उबर बाला, विस्तीर्ण कमर के अग्रभाग से युक्त एवं स्थूल हृदयशाली है, जिसके सूक्ष्म दौत दूध जैसे सचिक्कण हैं। जो वेगशाली ( तेज) पैरों से युक्त होता हुआ कुछ टेढ़ी पूंछवाला है ॥ १८ ॥
मैं इस कुत्ते के कारण चन्द्र को मृग-रहित-सा मानता हूँ । अर्थात्-मानों-यह कुना चन्द्र के मृगको मार डालेगा । मानों-इससे महिष-वाहन वाले यम को महिष-रहित सरीखा मानता हूँ। अर्थात् यह यमवाहन महिष ( भैंसा) को भी नष्ट कर देगा। इसके कारण आदिवराह-चरित को वराह-शून्य-सा मानता है। इससे सिंह-वाहन-शालिनी पार्वती को सिंह-रहित मानता हूँ। अर्थात्-यह भवानी-वाहन सिंह का भी वध कर देगा। इससे अटवी, पर्वत व पृथिवी को प्राणियों ( मृग, व्यान व वराह-आदि ) के प्रवेश से रहित हुई मानता हूं। अर्थात्-यह, अटवी, पर्वत, व पृथिवी के ( मग-आदि ) को मार डालेगा। आज मेरे शिकार के मनोरथ अभिलाषित कथा वाले होकर. फलेंगे ( पूर्ण होंगे। इसके बाद पशोमति महाराज ने निम्नप्रकार स्पष्ट कहा-'मेरी क्रीड़ा को वृद्धिंगत करनेवाली बुद्धि से अलंकृत हे पशुपति ( कुत्तों के रक्षक ) इस कुत्ते को इस स्थान से इस स्थान पर लाओ। पशुपति-स्वामी की जैसी आज्ञा है उसके अनुसार करता हूँ। फिरयशोमति महाराज ने प्राप्त हुए इस कुत्ते को साथ-साथ दोनों करकमलों से छुआ और उसको प्रिय लगनेवाली वस्तुओं। दूध-जलंदी-आदि ) का प्रलोभन देकर उसके मुख का चुम्बन किया । 'हं अकाण्ड मृत्यु ! 'जहाँ कहींपर में ठहरू वहाँपर तुम्हें इस कुत्ते को बांधना चाहिए' ऐसा कहकर प्रस्तुत राजा ने उसे कुत्तों के प्रतिपालकों में मुख्य 'मकाण्ड मृत्यु के लिए दे दिया । इसप्रकार स्वयं उपार्जन किये हुए कम से वृद्धिंगत व्यापार वाले कर्म की अधीनता से जब हम दोनों भी ( मोर व कुत्ते का जीव, जो कि पूर्व भव में क्रमश: यशोधर व चन्द्रमती चा ) पूर्वभव ( यशोधर व चन्द्रमति की पूर्व पर्याय ) में भीगे हुए विस्तृत भूमिवाले त्रिभुवन तिलक नाम १. रूपकजातिसमुच्चयालंकारः।