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यशस्तिलकचम्पूकाव्ये आमलकशिलातलमिव स्वस्छकलम्, इन्दुमणिनिःस्यन्दनभिय मुभगावलोकनम्, शव्ययं ज्योतिरिब जनितजगरप्रणयम्, मलकपल्लरोरङ्गिभिर्वमनारपिन्दामोदधिर्म असतावानीरसंततिभिः कुचोकमियनमनोहरवप्लिवजुभवल्लीविज्ञासिभिनाभिमण्डणावर्तीवामितम्नलिमस्थललाधिभिकरुकरिमकरकरामोगहृदयंगमः पावनखमयूलफेनस्फीतः प्रतिनरीप्रवाहरिव नगराङ्गनानिव्हर्जलकोजावसरेषु विरहिणीवमिवोत्कस्लिकाविलोदयं क्रियते मुक्ताफलतिवमः पयः । अपि च ।
करिगमरमुखोद्गीण मस्यामणः पुनः पतभाति । सुरमिथुनकलहविगलितमुक्ताफलभूषण भान्ति ॥२४॥ जलवेदीकरयन्त्रपरिष्टायन पारि विक्षिप्तम् । दुर्वणवण्डवीति पाति वियवासपत्रस्य ॥२५॥ पदचरणचलितजलहमकरस्यविन्दुकन्दलितम् । यस्याः पापः घलपति पुतणमति पौरलोकस्य ॥२६॥ पपलकलहंसबालकरिप्लस: पटपोग्बुजे भाति । यस्यां धर्मभयादिव पलायमानोषसंघातः ॥२७।। मध्यमषुलपमयकरालमा पुण्डरीकमुद्दण्डम् । हरति हरिमणिकलश सितातपक्षियं यत्र ॥२८॥
उद्गतमकाम्बरः सिताम्बुज पत्र मोवमन्धरितम् । उपरिचलघूलियूसरपवलमात्रच्छवि पति ॥२९॥ में स्थित हुए घोंसलों में क्रीड़ा करनेवाले उत्क्रोश पक्षियों से प्रचुर है। जो अमतप्रवाह-सरोखा सखोत्पादक स्पर्श से उज्ज्वल है। जो आमलक-स्फटिक-शिलातल-सा स्वच्छ पारीरवाला है । जिसका दर्शन चन्द्रकान्तमणि की तरलता-सा प्रीतिजनक है | जो केवलज्ञान सरीखा समस्त लोक को प्रीति-जनक है ।
कैसे नागरिक स्त्री-समूह द्वारा प्रस्तुत सिप्रा नदी का जल मलिन किया जाता है? जो ( नागरिकस्त्री. समूह ) दुसरी नदी के पूरों-सरीखे हैं। जिनमें केशलतारूपी तरङ्गर मना पाई जाता है। जो मुखरूपो कमलों की सुगन्धि से व्याप्त हैं। जिनमें बाहुलतारूपी वंतवृक्षों की श्रेणियां हैं। जो कुच ( स्तन ) रूपी चकवाचकवी के जोड़ों से मनोहर है। जो त्रिवली ( उदररेखाएँ ) रूपी लताविशेषों से उल्लसनशील है। जो नाभिमण्डलरूपी आवतों । कूपों) से मनोहर हैं। जिनमें नितम्ब । स्त्रियों की कमर के पृष्टभाग ) रूपी प्रशस्त पुलिन्न-स्थलों की प्रयांसा वर्तमान है। जो करु (जंघा ) रूपो जलहाथी व जलग्राही के शुण्डादण्डों के विस्तारों से रमणीक हैं एवं जो चरणों के नख-फिरणरूपो फेनपुञों से प्रचुर हैं।
जिस सिग्ना नदी में वर्तमान जल, जो कि जलहाथियों व मकरों के मुखों से उड़ेला हुआ व फिर भी आकावा से नीचे गिरता हुआ ऐसा सुशोभित होता है, जिसमें देवों के स्त्री-पुरुषों के जोड़ों ( देव-देवियों ) की मैथुनकलह से नीचे गिरे हुए मोतियों के आभूषणों की सदृशता वर्तमान है ।। २४ ॥ जिस सिना नदी में जलदेवो के हस्तरूपी यन्त्रों से आकाश में फेंका हुआ जल आकाशरूपी छत्र के चाँदी के दण्ड की शोभा को धारण करता है ॥ २५ ।। अमरों से कम्पित हुए कमलों की पुष्परस संबंधी धारण-विन्दुओं से व्याप्त हुआ जिस सिप्रानदी का जल नागरिक लोगों को सरल कुङ्कम के स्वीकार करने को अभिलाषा को शिथिल करता है। ॥ २६ ।। जिस सिप्रा नदी में कमल में स्थित हुआ और चञ्चल कलहंस शिशु के मुख से उछला हा भ्रमर धर्म के भय से भागता हुआ पाप-समूह सरीखा शोभायमान होता है ।। २७ 11 जिस सिम्रा नदी में पुष्परस में लम्पट हुए भ्रमर-समह का आधार व जल से वाहिर निकला हुआ श्वेतकमल ऐसी उज्ज्वल छत्र को शोभा को, जिसमें श्याम रत्नमयी कलश वर्तमान है, तिरस्कृत करता है । अर्थात्-कृष्णरत्नों के कलशवाली उज्ज्वल छत्र की शोभा को तिरस्कृत कर रहा है" ॥ २८ ॥ जिस सिप्रा नदी में वर्तमान श्वेतकमल, जो कि ऊपर स्थित हुए
१. उपमालंकारः। ५, उपमालंकारः।
२. रुपकीपमालंकारः ।
३, हस्वलंकारः।
४. प्रतिकस्तूपमालंकारः ।