Book Title: Yashstilak Champoo Uttara Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पञ्चम आश्वासः
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हेवीवोहव्याहाराहयमाम्पयःपानपरपषिकगणम, सचिरसंवानवामिनीपतचपलतरतणकक्षोपवितधारकवीयमानजरतीरक्षाविधानम्, सुरसुरभिनिषानमिवमपराभिरपि गणसिपिभिष्टिभिः सिपिमिः परेष्टुकाभिः सङ्घतिथिभिः समांसमोनाभिः बहुतिधिभिः सुवताभिः संख्यातासाभः पालनारम: विगतबहादसावतोकासधिमासृष्टिभिरुनाभिर्वाभिषेसरवालेयकारेयजातिमिश्च प्रभूलम्, वषिषघृतोवधी नामिव समवायभूतम् । तत्र सस्य विक्रमासरालाय प्रजपालस्य सनि मृगवंशवंशे सा मदीया चन्द्रमतिर्माता अवस्थानरूपातिरेहरतिशयितसकलशालाकलोक: कोलयको बमूब जातयुवभावश्च । योग्यस्वभावः खत्वयं श्वसपिङ्गास्नपराक्रमी निसर्गान्मार्गायुकक्रमवम् विश्वकरवडूनीन्माणी मृगयाविनोवस्येत्यनुयाय सेम बम्पतिना तस्यामेव मालबोमुखेन्दुमणानरजन्यामुज्जयिन्यां यशोमतिमहाराजाय वैवात्सोऽपि प्रामृतमानायि । राजा तं नित्यजागरूकतमबलोषय स्वगतम्
निसास्यः कपिलनयनः स्वल्पतीक्षणापफर्णः इक्षिक्षामः पृथुलजधनः पूर्णवक्षःप्रवेशः ।
पुग्धस्निग्धप्रतनुक्शनः सारमेयो महीपामालेटाय प्रजवसरपाः किषियाभग्नवालः ॥१७॥ मन्ये धानेन शरमासुतेनाकुरङ्गमिव हरिणलाञ्छनम्, भरतालमिव महिषवाहनम्, भष्ट्रायुधमिवाविवराहचरितम्, अहयंशामिव सिंहवाहिनीम्, असस्वसंचाराश्च बनावनोपरपराः। मृगयाममोरपाश्चाच में फलिष्पन्ति कामितकपाः ।' प्रकाशम्-'मविनोबानन्धनमते पशुपते, इत इतः समानीयताममं पक्षपुरुषः ।' पशुपतिः-'यथाज्ञापयति देवः ।' राजा प्राप्तमेनं क्वानं समं हस्ताभ्यां परामृश्य प्रलोभ्य तरियतस्तर्वस्तुभिनिष्ठीय च सदानने 'यत्राहं क्वचिववतिष्ठे तत्रायं परावैरी संयमनीयः' इत्युक्त्वा वान्तामणिमुक्ष्यायाकाण्डमृत्यये समर्मयामास ।
गिनी स्त्री समूह द्वारा जहाँपर मङ्गल-गान गाया जारहा है । कहीं पर दही के मथने से उत्पन्न हुई मथान-ध्वनि से जहाँपर गृह के मयूर विशेष रूप से नचाए जारहे हैं। कहींपर गायों की दोहन-ध्वनि से दूध पीने में तत्पर हुआ पथिक समूह बुलाया जा रहा है । कहींपर बन्धन की खूटी से छूटे हुए चञ्चल बछड़े के रोंदने से होनेवाले बच्चे का रक्षा-विधान वृद्ध स्त्रियों के लिए सौंपा जा रहा है।
इसीप्रकार जो ( गोकुल-गोशाला ) दूसरों भी बहुत सी एकबार ब्याई हुई गायों से प्रचुर हुआ कामचेतुओं के स्थान-सरीखा सुशोभित हो रहा था। फिर कौन २ सों गायों से वह प्रचुर था? जो बहुत सी प्रचुरप्रसूतिवाली ( अनेकबार ब्याई हुई। गायों से एवं बहुत सी समांसमोदा' ( प्रतिवर्ष प्रसन्न करनेवाली ) गायों में प्रचुर था | जो बहुत मी सुखपूर्वक दुही जानेवाली गायों से व बहुत सी अल्प दिनों के गर्भवाली गायों से प्रचुर था। जो ऐसी दूषित गायों से रहित था। जिनमें गिरे हुए गर्भवाली, बन्ध्या, सोंगों से रहित । मुण्डो ) व भिणी होकर बैल द्वारा मेथुन की गई, दूषित माएँ हैं, इसीप्रकार जो घोड़े, खच्चरगधे, गधे, और मेंढ़ों की जालियों से प्रचुर था एवं जो दधिसागर, क्षीरसागर व घृतसागरों का समुच्चय-सरीखा शोभायमान था ।
उक्त गोकुल में उस पूर्वोक्त विशेष पराक्रमी गोधन नाम के गोकुल पति के गृह पर कुत्तों के कुल में वह मेरी चन्द्रमति माता कुत्ता हुई। जो कि वेग, बल व रूप की अधिकता से समस्त गोकुल संबंधी कुत्तों के मध्य अतिशयवान् व युवावस्था प्राप्त करनेवाला हुआ। "सिह-सरीखा पराक्रमी यह कुत्ता. जिसके चारों पैर स्वभावतः शिकार करने में कुशल हैं, निश्चय से राजाओं को शिकार क्रीड़ा में योग्य स्वभाव वाला है ऐसा चिन्तवन करके उस गोषन नामके गोकुल-स्वामी द्वारा उसी उज्जयिनी नगरो में, जो कि मालवा देश को
१. 'समासमीना तु या मा प्रतिवर्ष प्रजायते' इत्यभिधान चिन्तामणिः ।
सं. टी. पु. १८६ से वंकलित-सम्पादक