________________
६४
यशस्तिलकचम्पूकाव्यै आवित्यमते च--
मषबीजाइपुरमथना अष्ट महानातिहाविभवसमुपेताः । ले देवा शताला: शेषा देषा भवन्ति नवतालाः ।। १०५ ॥ बराहमिहरव्याहते प्रतिष्ठाकाण्डे च-विष्णोर्भागवता भयाश्च सवितुर्विप्रा वितुर्वाणो मातगामिति मातुमण्डलभिवः शंभोः समस्मा द्विजः । शाश्याः सर्वहिताय शान्तमनसो भग्ना जिनानां विदुय में देषमुपाश्रिताः स्वविधिना ते तस्य कुणी क्रियाम् ॥ १०६ ।। निमित्ताध्याये च- पपिनी राजहंसाश्च मिन्याश्च सपोधनाः । पं देशमुपसर्पन्ति सुभिक्षं तत्र निविशेत् ॥ १०७ ।।
तथा--उर्व-भारवि-सयभूसि-भसंहरि भतुमेष्ठ-कष्ट-गुणावध-व्यास-भास-वोस-कालिवास-याण - मयूर - नारायण-फुमार-माघ-राजशेखराविमहाकषिकायेषु तत्र तत्रावसरे भरतप्रगौते काश्याध्याये सजनप्रसिद्धेषु तेषु तेवपाल्यानेषु च कथं तद्विषया महतो प्रसिद्धिः। तस्मात् चत्वार एते सहनाः समुद्रा यायव लोके ऋतवोऽपि षट् च । चत्वार एते समयास्तव पद दर्शनानीति वन्ति सन्तः ॥१०८॥
संसार के बीजरूप रागद्वेषों के अङ्कर (मोहनीय कर्म का क्षय करनेवाले हैं एवं जा आठ महाप्रातिहार्य ' रूपों ऐश्वयं में व्याप्त हैं, दश हाथ परिमाणवाल होते हैं, अर्थात्- उनकी प्रतिमा दश हाथ का होनी चाहिए और बाको के हरि च हादि देवता नो हाथ के परिमाणवाले होते हैं । अर्थात उनको प्रतिमाएँ नो हाथ की होनो चाहिए ॥१०॥
इसीप्रकार हे माता! आपके कहे अनुसार यदि दिगम्बर मत जैनदर्शन ) अभी बालिकाल में ही उत्पन्न हुआ है तो 'धराहमिहिर' आचार्य द्वारा कहे हुए 'प्रतिष्ठाध्याय' में निम्न प्रकार के वचन किसप्रकार से उल्लिखित हैं? वेष्णवों को विष्णु को और आदित्योपजीवी ब्राह्मणों को श्री सूर्य को प्रतिष्ठा करनी चाहिए। श्राह्मण, ब्रह्मा को प्रतिष्ठा करना जानते हैं एवं मातृमण्डल वेत्ताओं को सात माताओं को व भस्म सहित ब्राह्मण को गांभु की प्रतिष्ठा करनी चाहिए । बौद्धों को बुद्ध की तथा शान्त मनवाले दिगम्बरों को जिनेन्द्रों को प्रतिष्ठा करना जानना चाहिए । अतः जो गृहस्थ पुरुष जिस देव की सेवा में तत्पर हैं, उन्हें अपनी शास्त्रोक्त विधि से उस देव की प्रतिष्ठा करनी चाहिए ।।१०६||
इशोप्रकार निमित्ताध्याय में निम्नप्रकार के वचन कैसे कहे गए ? कमलिनी, राजहंस एवं निष्परिनही दिगम्बर साधु जिस देश में आते हैं। अर्थात्-कलिनी जिस तालाव-आदि में उत्पन्न होती है एवं राजहंस व दिगम्बर साघु जिस देश में आते हैं, उसमें सुकाल कहना चाहिए ॥१०७॥ उसोप्रकार में उर्व, भारवि, भवभूति, भतृहरि, भतृमेण्ठ, कण्ट, गुणाढ्य, व्यास, भास, बोस, कालिदास, बाण, मयूर, नारायण, कुमार, माघ व रानमेवर-त्रादि महाकवियों के काव्यग्रन्थों में उस उस अवसर पर एवं भरतप्रणीत काव्याध्याय में तथा सबंजन प्रसिद्ध उन उन दष्टान्त कथाओं में किसप्रकार से दिगम्बर सम्बन्धी विशेष प्रसिद्धि वर्तमान है ? उम कारण हे माता ! जिस प्रकार ये चारों समुद्र स्वभाव से उत्पन्न हुए वर्तमान हैं एवं जिस प्रकार लोक में छह ऋतुएं । हिम, शिविर, बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा व शरद ) भी वर्तमान में उसी प्रकार ये चार आगम ( जैन, १. अशोक वृक्ष, दिव्यपुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनि, चौसठचामर, विमसिहासन, करोड़ सूर्यों से अधिक प्रिय शरोर-तंज,
साईबारह करोड़ दुन्दुभिवाजे और छा । २. सप्तमातृमपटल प्रालाणी, इन्द्राणी, बाराही, भैरवी, चामुण्डा, कर्ण मोटो घ चर्चा |
यश .टी.प्र.११३से संकलित-सम्पादक