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तिलक काव्ये
विलिख्यमान शाखा भुज शिखरः शिखरशिखाडम्बरितनिधिमण्डल डिम्भतुण्डखण्डमानकुम्पलपर्यन्तः कुम्पलपर्यन्त संचरच्चारणम्रप्पू विमान मणिकिङ्किणीजालविलुण्ठित चिटपा पल्लवपुर पटलः, पल्लवपुटपटलात लखेलद्वावासको र कुटुम्बिनीकृतकितवालापविस्मापितपथिकसार्थः पथिकसार्थक पारध्थायात मिलितानेकदेशि को चितविचित्र वातकर्णी नोवीणं वचनवनदेवतो. लएलसरहस्ताहूयमानसचरीनिचयः, सहचरीनिचकर किशलय संघान सुख सुप्तागन्तुक लोकोपसेव्यमानबहुलशीतलच्याछुन्नतलवेशः, छायाच्छनतलदेशाध्यमृषावादविन्निखिन्न । ध्वन्य संबाषकलहः कुलितपुरः प्रयातपाम्यसंदर्भः, पान्यसंदर्भपरिभ्रमथ मविश्राम्याश्वमार्भकदमं गर्भितस्कन्धा भोगपरिसरः, स्कन्धाभोगपरिस रोपचितबनकर निवासनिषण्णािध्वगमिन्युनरतपुष्टताकुलितशकुन्तप्रनः प्रजापतिरिव प्रवशतानेकवर्ण प्रसूतिः निखिलभुवन विनिर्माणप्रवेश
भाग में पादमूल के पाषाणों पर क्रीडा करते हुए सर्ग-समूहों के कुण्डलाकार किये हुए शरीररूपी पवंत से मनोहर है और मेरुपवंत भी 'अहिव्यहवृत्तान्तकान्तः' अर्थात् नागदेव की कथा से मनोहर है। जिसकी ऊर्ध्वभूमि का अन्त तिरछे विस्तृत प्रदेशों पर आश्रय करनेवाली किरात-कामिनियों से व्याप्त है और सुमेरुपर्वत भी जिसकी ऊर्ध्वभूमि का प्रान्तभाग वरखाली देवियों व विद्याधरियों से व्यास है । ऊर्ध्व प्रदेशों पर गर्वयों की कामिनियों के संभोग क्रीडा सम्बन्धी वेगातिशय से चञ्चल हुए अग्रभाग से उन्नत है । एवं मेरु भी गन्धर्व्वं कामिनियों की रति से व्याप्त है एवं जिसकी लक्ष्मी (शोभा) तीनों लोकों (ऊर्ध्व, मध्य व अधोलोक) से निरीक्षण करने योग्य है ॥ ९ ॥
जिसका असंख्य गुणरूपी पण्य (बेंचने योग्य वस्तु) तीन लोक के व्यवहार में आचरण किया गया है ऐसे हेमारिदत्त महाराज ! कैसा है वह वृक्ष ? जिस पर मैं (यशोधर) मोरों के कुल में मार हुआ ? जो (वृक्ष), यक्षों के आनन्द की क्यारी है। जिसकी लताओं के बाहु-शिखर अनेक पक्षी समूह की कामिनियों (पक्षिणियों) की तीखी शिखा के अग्रभागों से व्याप्त हुए नखों व चोचों द्वारा चुण्टन किये जा रहे हैं। जिसकी कोपलों के अग्रभाग वृक्ष-शिखर के अग्रभागों पर वर्तमान विस्तृत व घने घोंसलों पर क्रीडा करते हुए पक्षियों के शावकों कोबोंचों से छंदन किये जा रहे हैं। जिसकी शाखाओं के अग्रभागों के पल्लव पुट-पटल (समूह) कोंपलों के अग्रभागों पर संचार करते हुए देवविशेषों की सेना के विमानों की रत्नजड़ित सुवर्णमयी क्षुद्रघण्टिकाओं की श्रेणी से तोड़े गये है । जहाँ पर संयुक्त प्रवाल- (कोमल पत्ते ) समूहों के मध्य भागों पर क्रीडा करती हुई व विशेष शब्द करने वाली शुक्र- कामिनियों (मेनाओं) से किये हुए घूर्तता युक्त एकान्त भाषणों द्वारा पथिक-समूह आश्चर्यान्वित कराये गये हैं। जिस पर ऐसे वन देवताओं के, जो कि पथिक समूह की कथारूपो जिह्वारथो से आकर मिली हुई, अनेक देशों के योग्य तथा चमत्कार करनेवाली किम्बदन्तियों के सुनने से विशेष वाणी बोलने वाले हैं, विशेष चञ्चल करकमलों द्वारा वन- देवताओं का कामिनी समूह बुलाया जा रहा है। जिसका अधःप्रदेश, ऐसी छाया से आच्छादित है, जो कि स्त्री समूह के हस्तपल्लवों से किये हुए पाद-मर्दन से उत्पन्न हुए सुख से सोए हुए पथिकजनों द्वारा स्वीकार की जा रही है एवं जो घनी व शीतल है। जहां पर ऐसे पथिकों के, जो कि छाया से आच्छादित हुए अधःप्रदेश के आश्रय के लिए बढ़ती हुई प्रचुर अभिलाषा से जा रहे थे एवं जो घने व श्रान्त ( थकित थे, संघटन से उत्पन्न हुई कलह के कारण पहिले से आया हुआ पथिक-समूह व्याकुलित हुआ है | जिसके विस्तृत स्कन्ध का समीपवर्ती स्थान पथिक समूह के साथ पर्यटन करने से उत्पन्न हुए श्रम के कारण विश्राम करते हुए तपस्वी बालकों के कुशों से आच्छादित हुआ है । विस्तृत स्कन्ध की आगे की भूमि पर निर्माण कराये हुए किरात भवनों में स्थित हुए विट ( कामुक ) पथिकों के स्त्री-पुरुषों के जोड़ों के मैथुन की
१. हेतूपमालंकारः ।