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चतुर्थ आश्वासः सप्रणयमतिप्रकटितकायणामय गाविभूतप्रधयं च पादयोनिपश्य मामेधमक्तिवली-'पुन, अहमनाथेत्यनुसम्पया बा, मातेति वरमलतया बा, मशंगायत्तनोबितरयुपरोधेन वा. वृद्धति ट्याललया था. गुरुवचनभनुल्लङ्घनीयमित्याशयेन वा, भविष्यत्यवश्यमनेनापयिताइोग पूर्वमारितस्यापि कृतस्य हानिरिनि परामर्शन वा, फिमपरः कोऽपि नास्ति तव पण्डितमन्यभावस्यास्पदं येन मयि जरत्यामेवमतोब विहितविचारचपनोऽसीत्यपालम्भन भयेन वा, युक्तमपुतं वा गरेव जानातोति मार्गानुसारणेन वा. न भवति प्राभं चेदनुष्ठानमहझेव स्यामेनसां भागीति मनोषमा वा, चिरमियं महीपति पदे स्थिता मयापानिता रातन गोवियतोति संभावनेन वा, पुरा हि तस्या एवं मम प्रभवन्ति वासि कुतो नाति स्नेहानुगमनेन या, नो चेदाय करिष्यामि देवतोपहाराय त्वमेष ताधवनुभव भयकुलविशवः श्रियोश्याः फलमित्यपवादबीमाया घा, यदि परलोकबोयाशङ्कननान्येन वा केदिकारणेन प्राणिधाते न व्याप्रियसे, मा प्रावतिष्ठाः। किंतु विनिवेदितवक्षिणोत्सवानिधिः परिधाविलसकलसस्वीपहारकलोत्कटेम पिष्टकुक्कुटेन कुलदेवतार्य अलिभुपकस्थ्य सदवशिष्टं पिट मांसमिति च परिकल्प्य मया सहावश्यं प्राानीयम्' इति ।
नाजा- स्थगतम् ! ) 'अहो, महिलानां दुराग्रहनिरयग्रहाणि परोपधातापहाणि च भवन्ति भामेण चेष्टितानि । स्त्रियो हि नाम भवन्तु भर्तृषु शम्माविषये पुत्रेषु च प्रनिपालनसमये प्रकामं निसृष्टार्था निरङ्कुशाचरणसमर्थाश्च, म है न कि कानों को कटु प्रतीत होनेवाले ।' उगने मुझसे बोसी प्रार्थना की?- 'हे पुत्र ! यदि तुम दुर्गसि-गमन की आशङ्का से अथवा किसी दूसरे कारण से जीवबंध में प्रवृत्त नहीं होते तो मत प्रवृत्त होओ, किन्तु आटे के मुर्ग से, जिसमें ऐसे राह्ममा अग, निकाः ३२.हिले जिले की हुई दक्षिणा के लिए है और जो त्रयीवेदविद्या में निपुण हैं, समस्त प्राणियों को बलि का फल विविध ग्रन्थों के प्रमाणपूर्वक ज्ञापित किये जाने से महान है, कुलदेवता के निमित्त बलि ( पूजा ) समर्पण करके तथा उससे बचे हुए आटे में मां का संकल्प करके निम्न प्रकार कारणों से तुम्हें मेरे साथ अवश्य भक्षण करना चाहिए।
हे पुत्र ! तुम्हें किन कारणों से उक्त कार्य करना चाहिए ? 'हे पुत्र' ! में अनाथ हूँ, इसप्रकारकी दयालुता से अथवा 'यह मेरी माता है सो अनुरागता से, अथवा 'यह मेरे दर्शनावीन जीवनवाली है' इसप्रकार के आग्रह से, अथवा, 'यह बुन्द्र है' इगप्रकार की दयालुता से, अथवा 'माता-पिता-आदि मुरुजनों का वचन उल्लडन करने लायक नहीं है' ऐसे नेत्तिक अभिप्राय से, अथवा 'इसका मनोरथ पूर्ण न होने से पूर्वकाल में विधिपूर्वक किये हुए पुण्य का नाश अवश्य ही होगा इगप्रकार के विचार से अथवा हे पुत्र! तुम्हारी मूर्खता का स्थान क्या कोई दुगरा गुण या स्वभाव नहीं है ? जिससे तुम मुझ बृद्धा के विषय में भी उक्तप्रकार किये हा विचार से विशेष अस्थिर प्रकृतिबाले हो रहे हो' इसप्रकार को उलाहना के भय से, अथवा 'योग्य-अयोग्य को माता पिता ही जानते हैं इमप्रकार के मार्ग का अनुसरण ( स्वीकार ) करने से, अथवा 'यदि यह शुभ अनुष्ठान नहीं है तो में ही पाप-भागिनी होऊँगो' ऐसी बुद्धि से अथवा 'विशेष पूज्य स्थान पर अधिष्ठित ६ई भी, मेरे द्वारा तिरस्कृन होने के कारण यह चिरकाल तक जीवित नहीं रहेगो' इसप्रचार के विचार में अलवा जन्म उसके परोक्षकाल ( पाठ गोछे । में ही परं वचन उसको आज्ञापालन में समर्थ हाते हैं तब इससमय उसके सगक्ष क्यों नहीं आज्ञापालन में समर्थ होंगे ?' इसप्रकार के प्रेम का अनुसरण करने से अथवा 'यदि भेग वचन स्वीकार नहीं करते तो मैं हो अपने वो देवता की बलि निमित्त कार दंगो, फिर मातृ-पितृवंश में शुद्ध हुए तुमही इस राज्य की लक्ष्मी ना फल भोगा' इसप्रकार के अपवाद के भय से ।
___ उक्त बात को सुनकर, यशोधर महराज ने अपने मन में निम्नप्रकार विचार किया 'आश्चर्य है कि स्त्रियों के कार्य, बहुलता से दुराग्रह से रुकावद-हीन और दूसरों का बध करने में दृढ़प्रतिज्ञा-युक्त होते हैं। क्योंकि