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यपास्तिलकचम्पूकाव्ये एदमन्येऽपि शिविदधीचिबलिवाणासुरप्रभृतीनामवनिपतीना सुरमितमयाबीनामितरेषां च सत्त्वानामालम्भनेनात्मनः शान्ति कर्माणि सम्पगारेभिरे। यथा जलः पङ्कजिनोवलानां पङ्कन लेपो नमसो यया च । राशस्तथा द्धमतेनं पापः संबन्धगन्धोऽस्ति कयंबनापि ॥१५२॥ विषं विषस्यौवषमग्निरग्नेरियं प्रसिद्धिमहतो यर्थक । पुण्याय हिसापि भवेत्तथैव सर्वत्र हे पुत्र न पड्डलानि ॥१५३॥
गोब्राह्मणस्त्रीमुमिदेवतानां विचारयेत्कश्चरित विपश्चित् ।
श्रुतिस्मृतीनिहासपुराणवाचस्त्यजारमना चेन्न तवास्ति कार्यम् ।।१५४।। न कापि सः पुरुषार्थसिद्धि सूमेक्षयातीवपरीक्षकस्य । जगत्प्रवाहेण तु तितम्यं महालनो येन गतः स पन्याः ॥१५५।। विलासिनीविभूमदर्पणानि कंदर्पसंतपंणकारणानि । क्रियाश्रमच्छेवकराणि हातु मधूनि को नाम सुषोयतेत ॥१५॥
मताः ममा मम्मयतत्वविवर्मताः स्त्रियो मद्यविजिताइन ।
ये भजते मांसरसेन हीनं ते भजते कि नु न गोमयेन ॥१५७।। अहो पुन ! गौतम नाम के महामुनि ने प्राण रक्षा के लिए अपना उपकार करनेवाले बन्दर को क्या नहीं मारा ? इसीप्रकार हे पुत्र ! विश्वामित्र नाम के महामुनि ने अपना उपकार करनेवालं कुते को क्या नहीं मारा ? इसीप्रकार दूसरे राजाओं ने भी शिषि, दधीचि, बलि व वाणासुर आदि नामबाले राजाओं के घात द्वारा और गाय वगैरह पशुओं के एवं दूसरे प्राणियों के घात द्वारा अपने शान्ति कर्म भली प्रकार आरम्भ किए। हे पुत्र ! जिसप्रकार कलिनियों के पते जलों से लिप्त नहीं होते एवं जिसनवार कीचड़ से बाकाश लित नहीं होता उसीप्रकार शुद्ध बुद्धिवाले राजा का पापों से वन्धलेश भी किसी प्रकार नहीं होता ॥१५२।। हे पुत्र ! जिसप्रकार विष की औगधि विप व अग्नि को औषधि अग्नि है यह विशेष प्रसिद्धि है उसी प्रकार जीव वध भी कल्याण हेतु होता है । हे पुत्र | सभी खेतों में छह हल ही नहीं होते, अर्थान् --किसी खेत में कम और किसी में ज्यादा भी हल होते हैं एवं किसी में छह ही हल होते हैं ।।१५३॥ कौन विद्वान् पुरुष गायों, ब्राह्मणों, स्त्रियों, गौतम-आदि महामुनियों एवं देवताओं के आचार का विचार करता है ? यदि तुम्हें अपनी आत्म-रक्षा से प्रयोजन नहीं है तो वेद, स्मृति ( धर्म शास्त्र ), इतिहास और रामायण-महाभारत-आदि पुराणों के वचन छोड़ो। अर्थात् यदि तुम आत्म रक्षार्थी हो तो वेद-आदि के वचन मत छोड़ो ॥१५४॥ हे पुत्र ! मुक्ष्म दृष्टि से विशेष परीक्षा करनेवाले मानव की कोई पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष ) सिद्धि नहीं होती । अतः मनुष्य को लोक मार्ग से प्रवृत्ति करनी चाहिए, क्योंकि जिस मार्ग से सज्जन प्रवृत्त होता है, वही कर्तव्य मार्ग है ॥१५५।। है पुत्र ! कौन विद्वान् पुरुष ऐसे मधु व मद्य-आदि के छोड़ने का यल करेगा? जो ( मधु-आदि ), कमनीय कामिनियों के विलासों ( हाव-भाव-आदि ) के देखने में दर्पण-सरीखे हैं और कामोद्रेक के उद्दीपन के कारण हैं एवं कर्तव्य करने से उत्पन्न हुए परिश्रम को नष्ट करनेवाले हैं ॥१५६॥ हे पुत्र ! कामशास्त्र के रहस्य में प्रवीण पुरुषों ने नरी हुई स्त्रियाँ और मद्य न पीनेवाली स्त्रियाँ समान मानी हैं। हे पुत्र ! जो मांस रस-रहित भोजन करते हैं वे लोग क्या गोबर-सहित भोजन नहीं करते?।।१५७।। १. गौतम नाम के महामुनि की कथा-एक समय गौतम नाम के महामुनि तीर्थयाथार्थ गए परन्तु मार्ग भूल जाने
के कारण महान वन में प्रविष्ट हुए । प्यास से क्यालित हुए एवं भूख को अग्नि द्वारा जलती हुई कुक्षिवाले उन्हें स्वच्छन्द विहार करनेवाला बन्दर तालाव-आदि जसस्थान पर ले गया। बाद में उस मुनि ने बन्दर द्वारा विक्षाया हमा पानी पीकर उस बन्दर को मार कर उसके मांस का भोजन करके धन को पार किया 1