________________
वण-अभिनन्दन-ग्रन्थ हाथसे छिटक गो, फूट गरो।" चलो छुट्टी भई अब नई पियें ।' सहयोगियोमें चर्चा अायी, शासन और स्कूल गये नहीं भाई 'धूलि पड़ा हीरा है।'
x
X __काशी आये विद्वनों के यहां गये उन्होंने अब्राह्मण कहकर ठुकरा दिया। शास्त्रीजीके यहां पहुंचे विनम्रता पूर्वक विनयकी अांखें उठायी सामने दुर्वासा ऋषि हैं । अपमान और भत्सना धारापात, लौट
आये। विद्यार्थी-वत्सल शास्त्रीजीका क्रोध शान्त हुआ कैसा सौम्य लड़का है, मैं व्यर्थ कुपित हुआ, नहीं उसे पढ़ाऊंगा 'वह धूलि भरा हीरा' है।
x पपौरा में परवार सभा होने वाली थी। किसे अध्यक्ष बनाया जाय ? पैसे का नेतृत्व जो ठहरा 'ये सिंघई, वे सेठ, आदि शुरू हो गया। किसी कोनेसे आवाज आयी जिसने स्याद्वाद, सर्तक, आदि अनेक विद्यालय खोल कर विद्वत्सरिता वहा दी है उस 'धूलि भरे हीरा' को। फिर क्या था बहुत ठीक, बहुत ठीक का समा बंध गया।
जबलपुरके नेता आजाद हिन्द फौजकी रक्षाके लिए चन्दा करनेको सभा करनेके लिए चिन्तित हैं,जैनियोंसे कहो ।'जाने भी दो अपने साधुनोंको सब कुछ मानते हैं,और वे साधु न जाने क्या बोलते हैं । वही बोलें वही जानें । "इससे क्या मतलब पैसा तो यहां वही दे सकते हैं । अच्छा करिये । ठसाठस भरी सभा मञ्चपर एक मझौले कदका सांवला वृद्ध किन्तु तेजस्वी साधु दो चादर श्रोढ़े आ बैठा। लोग बोले, बाबासे पं० द्वारकाप्रसादने कहने के लिए आग्रह किया। बाबा दो चार वाक्य बोला और उसी कड़ाके की ठंड में उसने अपनी एक चादर उतार कर भेंट कर दो। ठिठुरते सिकुड़ते लोगोंकी शारीरिक ही नहीं आन्तरिक ठंड भी विदा हो गयी । वह चद्दर ही तीन हजार में विका और लग गयी वर्षा रुपयों,गहनों,आदि की । पं० मिश्र बोले महाराज ! श्रांखे श्राज खुली हैं, धन्य हैं, आप 'धूलि भरे हीरा हैं।'
अतः हे ! हीरा गुरु हम शिष्य धूलि कणोंका आपसे अनादि सम्बन्ध मोक्षान्त हो । स्या० दि० जैन विद्यालय काशी -
(वि०) नरेन्द्र, धनगुंवा
काश! मैं पढ़नेका लक्ष्य आत्मसुधार करता तथा अपने ज्ञानपर अमल कर सकता तो पूज्यश्रीके चरण कमलों में श्रद्धाञ्जलि समर्पित करनेका अधिकारी होता। रायपुर -
(पं०) बालचन्द्र, शास्त्री, का० ती०
तीस