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वर्णी-अभिनन्दन-ग्रन्थ
साथ चरित्र सहयोग, प्रभावक वाणी, परिणामोंमें अनुपम शन्ति, एवं आत्मिक और शारीरिक चरित्रकी उज्ज्वलता, आदि गुणराशिसे प्रभावित हुए विना नहीं रहा है । आपने ही जैनसमाजको तो सत्पथ दिखलाया है । अतः मैं पुज्यपाद श्रद्धेय वर्णीजी के प्रति श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हुआ आपके नैरोग्यपूर्ण दीर्घजीवनके लिए अनन्त महिम भगवानका स्मरण करते हुए कामाना करता हूं। जयपुर]
(पं०) इन्द्रलाल, शास्त्री, विद्यालङ्कार 卐 जैनसमाज ही नहीं भारत भर में अज्ञान और त्याग का गठबन्ध है । त्यागी ज्ञानी नहीं, ज्ञानीमें अतृप्त वासनाओंका नर्तन है फलतः त्याग नहीं । पूज्य श्री वर्णीजी वह महाविभूति हैं जिन्होंने त्यागकी उत्कट भावना होते हुए भी पहिले ज्ञानार्जन किया, फिर स्वर्गीय मातु श्री (चिरोंजा-) बाईजी ऐसी निसर्ग विदुषीकी तीक्ष्ण एवं स्नेहालु देख रेखमें क्रमशः त्याग मार्ग पर पग रखे। यही कारण है कि ये जैनसमाजकी अनुपम सेवा कर सके हैं । हे राजर्षि ! शतशःप्रणाम । ईसरी-विहार ]
(पं०) कस्तूरचन्द, शास्त्री
काश ! भरतमें वह परम्परा फूलती फलती जिसे स्याद्वादसे प्रभावित हो उपनिषत्कारोंने अपनाया था तो 'हरिस्तना ताडयमानोऽपि न गच्छेज्जैन मन्दिरम्" ऐसी संकुचित मनोवृत्ति विद्वानोंमें घर न करती । और न जैनियोंमें ही सभ्यक दर्शनके दोष आठ मद ही आते । तब वणोजी जैनसमाजके क्षेत्रमें ही सीमित न रहते अपितु 'विश्व विभूति' होते । सहारनपुर ]
नोमिचन्द्र, बी० कोम०, एल-एल० बी०
त्यागमूर्ति न्यायाचार्य पण्डित गणेशप्रसाद वर्णीजी जैन समाजके अद्वितीय रत्न हैं । अपने अनुपम ज्ञानार्जन करके उसके साथ जी अनुपम वैराग्य भावना को अपनाया है वह हम सबोके लिए गौरव की वस्तु है।
___ आप जैनसमाजकी दशा सुधारने और उसमें जागृति उत्पन्न करनेके लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहे हैं । उनकी प्रोजमयी मूर्तिके दर्शन करने व आपसे सद्धर्ममय-देशनाकी प्राप्ति होने से प्रत्येक मुमुक्षुकी आत्माको जो शान्ति प्राप्त होती है वह केवल अनुभवकी ही बात है ।
____ आप संसारमें जैन वाङ्मय के प्रचारार्थ सदैव उत्सुक रहते हैं और सारा जीवन आपने जैन धर्म और जैन वाणीकी सेवा में लगाया है । केवल धार्मिक ही नहीं सामाजिक उन्नतिके लिए भी आप प्रयत्नशील हैं। कई स्थानोंपर जटिल समस्याएं उत्पन्न हुई अोर भिन्न तथा एक जातिमें भी संघर्ष के.
अट्ठाईस