Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीमाल पारिश रिछद
७. अनिलव---अपने गुरु प्राचार्यादि का नाम नहीं छिपाना।
८. बहुमान - आचार्य व उपाध्याय गणिनी प्रादि का विनय करते हुए अध्ययन करना ।
इस प्रकार ये ज्ञान के ८ भेद हैं। इसी प्रकार चारित्र के १३ भेद हैं। ५ महाव्रत ५ समीतियों और तीन गुप्तियाँ ।
हिंसा, असत्य भाषण, चोरी अब्रह्म और परिग्रह मुर्छा का सर्वथा नवकोटि से त्याग करना पञ्च महाव्रत हैं। पाँचों पापों का क्रमशः पूर्ण त्याग करने से पांच महाव्रत
१. शाहिसा महाव्रत-त्रसस्थावर जीवों का पूर्ण रक्षण । २. सत्य महाव्रत-अठ बोलने का सर्वथा त्याग। ३. अचौर्य महाव्रत-तिल-तुष मात्र भी वस्तु विना दो हुयी नहीं लेना। ४. पूर्ण ब्रह्मचर्य महावत-स्त्री मात्र का सर्बथा पूर्ण त्याग करना । ५. अपरिग्रह-तिनका मात्र भी परिग्रह नहीं रखना। अर्थात् बाह्याभ्यन्तर दोनों ही प्रकार के परिग्रहों का सर्वथा त्याग करना।
५ समितियाँ -- १. ईर्या समिति -चार हाथ आगे जमीन देखकर चलना ।
२. भाषा समिति-हितमित और प्रिय भाषण करना परन्तु धर्म विरुद्ध आगम विरुद्ध नहीं बोलना ।
३. एषणा समिति--विधवा विवाह, विजातीय विवाह करने वालों के घरों को छोड़कर शुद्ध कुल वंश परम्परा वालों के यहाँ ४६ दोषों को टालकर शुद्ध निर्दोष आहार दिन में एक बार ग्रहण करना । ३२ अन्तराय टालकर आहार लेना।
४. प्रादान-निक्षेपण---जीव जन्तु देखकर पीछी से प्रमार्जन कर पुस्तक चौकी पाटा कमण्डलु आदि का उठाना व धरना ।
५. उत्सर्ग या व्युसर्ग समिति--शरीर से ममत्व छोड़कर खड़े होकर ध्यान करना । मन वचन काय को वश में करना गुप्ति है ये तीन है :---.. १. मनोगुप्ति मन को रक्षित करना, वश में रखना । २. वचन गुप्ति -वचन को वश करना, मौन रहना ।
३. काय गुप्ति शरीर को वश करना एक ही प्रासन से स्थिर हो आत्म साधना ध्यान करना आदि । इस प्रकार यह १३ प्रकार का चारित्र है। यहाँ संक्षिप्त वर्णन किया है विशेष जिज्ञासुओं को मूलाचारादि ग्रन्थ देखना चाहिए ।