Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ोपाल चरित्र दसम परिच्छेद संसारो दुःसहो ज्ञयश्चतुर्गति समन्वितः । यत्र जीवाः स्व कृत्येन संसरन्ति निरन्तरम् ॥५०॥ छेदनं भेदनं शूलारोहणं ताडनादिकम् । नारकाणां महादुःखंकविधाचामगोचरम् ॥५१॥ पशूनां वध बन्धादि दुःख संवतत्तं सदा । शुधा पोषणशीतो गतः पापरकम् ॥५२॥ इष्टानां च वियोगेन दुष्ट संयोगतस्तथा । रोगशोकादिकं दुःखं मनुष्याणां विशेषतः ॥५३॥ देवानामपि संसारे जायते दुःख मुत्कटम ।
इन्द्रादीनां समालोक्य विभूति मानसं दुःखम् ॥५४॥ अन्वयार्थ--(चतुर्गतिसमन्वितः) चार गतिस्वरूप (संसारः) संसार (दुःसहो) असहनीय (जयः) जाना गया है (यत्र) जहाँ संसार में (जीवाः) प्राणिगण (स्वकृत्येन) स्वोपाजित कर्मानुसार (निरन्तरम् । सतत (संमरन्ति) घूमते रहते हैं (नारकाणाम् ) नरक में उत्पन्न नारकियों के (छेदन-भेदन ) विशूल कांटों से छेदना तलवारादि से भेदन-चीरना (शुलारोहणम् ) फाँसी पर चढाना, शूली चढाना (ताडनादिकम् ) कोडे डण्डे आदि से पीटनादि (कविबाचामगोचरम् ) कवियों के द्वारा भी जिनका वर्णन न किया जा सके ऐसे (महादूःखम) भहान् दुःखों को (पशूनाम्) तिर्यञ्चों के (बध) कोडे आदि से मारना (बन्धादि) रस्सी, सिकडी लोहे की चैनादि से बाँधा जाना (क्षुधातृपोष्णशीतोत्थम्) भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी से उत्पन्न (पापतः) पापोदय से (परबश्यकम् ) पराधीनता के कारण (सदा) हमेशा (दुःखम् ) दुःख (संवर्तते) होता ही रहता है (मनुष्यागाम्) मनुष्यों के (विशेषतः) विशेष रूप से (इष्टानाम्) इष्टजनों का (वियोगेन) वियोग होने से (च) और (दृष्टसंयोगत:) दुर्जन या अनिष्ट वस्तु के संयोग से (तथा) उसी प्रकार (रोग शोकादिकम् ) रोग-शोक आदि (दुःस्त्रम्) दुःख (जायते) होता है (संसारे) संसार में) (देवानामपि) देवों के भी (उत्कटम् ) उत्कृष्ट (दुःखम् ) दुःख (इन्द्रादिनाम् ) इन्द्र आदि की (विभूतिम) विभूति को (समालोक्य ) देख-देख कर (मानसंदुःखम्) मानसिक पीडा (जायते) होती है।
भावार्थ-संसार भावना का प्राश्रय लेकर श्रीपाल भूपेन्द्र विचार कर रहे हैं। "यह संसार चारों गतियों से निर्मित है संशारी प्राणी वार्माधीन हो इन चारों गतियों में विविध दु-खों को भोगता हुआ निरन्तर परिभ्रमण करता रहता है। पापकर्म के तीव्र उदय से नरक गति में जाकर पडता है वहाँ काँटों से छिदना, यन्त्रों से चिरना, फटना, भेदन किया जाना, शूली पर चढ़ना, फाँसी पर लटकना, घना से पिटना, ताडनादि अनेकों भीषण, दुर्दान्त, घोर दु खों को सहन करता है, आँखें फोडना जिह्वा