Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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थोपाल चरित्र दसम् परिच्छेद अनुशीला महासती मदनसुन्दरी आदि रानियों ने भी दीक्षा घारण की।
अन्वयार्य-(भव्यो) भव्यात्मा (राग्यो) रानियाँ (मदनसुन्दर्याद्या) मदनसुन्दरी, मदनमजला गुगामाला आदि ने भी (एकशाटीम) एकमात्र साडी के (बिना) बिना मेष (मङ्गान) परिग्रहों को (त्यक्त्वा) छोड़कर (अद्भुतम्) आश्चर्यकारी (तपः) तपश्चरण (भूभुजा) राजा के (समम् ) साथ (आददु:) धारण किया।
भावार्थ-पतिदेव के सकन संयमी होने पर अर्थात् दिगम्बर दीक्षा धारण करने पर उनको परमप्रिया, भोगलालिता ललनानों ने भी एक साडो मात्र परिग्रह रख समस्त बा ह्या
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भ्यन्तर परिग्रहों का सर्वया त्याग कर आर्यिका दीक्षा धारण को । पतिपथ का अनुकरण कर भारतीय वीराङ्गनाओं ने धर्मध्वजा के साथ आत्मकल्याण को वजा को फहराया । धादर्श महिलारत्नों का यही धर्म है जितनी भोग के क्षेत्र में सूकुमारी, कोमलाङ्गी होती हैं उतनी ही संयम के पथ पर कठोर भी । अतः अद्भुत तप धारण कर श्रमणी हो गई ।।६।।
सत्यं विधाकराणामा प्रभातस्थ्यापि नित्यशः । कि त्यजन्ति न लोकेस्मिन् भव्याश्चासन्तमूर्तयः ॥७॥