Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 582
________________ ५४६] [श्रीपाल चरिय दशम् परिच्छेद पताकिनी सेना तैयार की। जिममें अलौकिक शक्ति है ऐसे रत्नत्रय कवच को धारण किया। वे पूर्ण दलबल के साथ कर्मारातियों से युद्ध करने लगे। लोकोजर राज्य करने के अभिलाषी वे धीर–वीर मुनि प्रात्मशक्ति को विकसित करने में पूर्ण सन्नद्ध हुए 1६८ से १००।। त्रिकाल योगमालम्ब्य महामन्त्राणुगो महान् । संजातः स्व-पोलतः दशातलिपिशा. अन्वयार्थ -- (महान् ) महात्मा श्रीपाल मुनि (त्रिकालयोगम्) तीनों ऋतुओं के योग को (मालम्ब्य ) धारण कर (महामन्त्राण गः ) महामन्त्र णमोकार का अनुचिन्तन करने वाला (व्यक्तः) प्रत्यक्ष रूप से (स्व परः) अपने और पर के प्रति (दयादत्तिविशारदः) दयादान दाता सञ्जातः) हुआ। भावार्थ ---श्रीपाल महामुनिराज घोर तपारुढ हो गये । वर्षाऋतु में वृक्ष मूल योग धारण करते, शरदऋतु में शुभ्रावकाश योग अर्थात् खुले चौपट-स्थान में खुले-निर्मल आकाश ले ध्यान लगाते, गरमो में पर्वतीय चट्टानों पर सर्य की ओर मख का ग्रातापनयोग धारण कर आत्मध्यान करने में तल्लीन होते । इस प्रकार तीनों कालों में स्थिर हो एकाग्रचित्त से दुर्द्धर तप तपते थे । स्पष्ट प्रतीत होता था कि वाह्य क्रियानों-आवागमन अधिक का त्याग कर वे जीवसंघात का त्याग कर दिये और आत्मलीनता से विषय-कषायों से प्रात्मा की रक्षा कर रहे थे । अर्थात् स्व अपनी दया और परजीवों को भी दया में ततार हुए । निश्चय ही जो अपने पर दया करता है वह पर का रक्षक होता हो है । वे निरन्तर महामन्त्र णमोकार का अनुसरण करते थे । अर्थात् स्त्रशुद्ध स्वभाव से च्युत होने पर पञ्चपरमेष्ट्री स्वरूप चिन्तन में आरूढ हो जाते । ध्यान उनसे दूर भाग चुके थे। शुभध्यान में ही सतत प्रवृत्त हो रहे थे ।।१०१।। महाप्रतानि पञ्चोचैः कृत्वा सामन्तसत्तमान् । विधाय समितीः पञ्च सज्जनानां च सङ्गतिम् ।।१०२।। पञ्चेन्द्रिय मनोऽन्तस्थ वैरि षडवर्गसञ्चयम् । ति स्रोगुप्तीः सुगुप्तीश्च स चक्रे मुनिपुङ्गवः ॥१०३॥ षडावश्यक कृद्कर्म, वस्त्रं दृढं यतीश्वरः । परमागम शस्त्रोघमलसन कर्मशत्रुके ।।१०४॥ तथा लोचमचेलत्वमस्नानं भूमिनिद्रया । अदन्तधावनं नाम स्थिति भोजनमेककः ।।१०५।। अन्वयार्थ-- (सः) वह श्रीपाल (मुनिपुङ्गव:) मुनि श्रेष्ठ ने (पञ्च ) पाँच (महाव्रतानि) महाव्रतरूपी (सामान्तसत्तमान्) उत्तम सामन्तों को (उच्चैः) पूर्णरूप से ( करवा)

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