Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 558
________________ ५२२] [श्रीपाल चरित्र दसम् परिच्छेद गर्गदर्शक सतिमिसाज पुनः वे अशरण भावना-द्वितीय भावना का चिन्तन करते हैं-- शरणं नास्ति संसारे जन्तूनां दुःखसागरे । इन्द्रो वा धरणेन्द्रो वा चक्की वा कः परो नरः ॥४६॥ सम्प्राप्ते मरणे घोरे विद्यमाने च सज्जने । लोहं वा चम्बकं कर्म जीवं नीत्या प्रयान्त्यलम् ॥४७॥ सिंहस्याग्नं मृगस्येव पति तस्यापि कानने । संसृतौ शरणं नास्ति जीवानां सरतां परम् ॥४॥ वर्शन ज्ञानचारित्रं पवित्रं भुवनत्रये । केवलं शरणं जन्तोर्नान्यं मान्यं बुधोत्तमैः ॥४६।। अन्वयार्थ... (दुःखसागरे) दुख का समुद्र रूप (संसारे) इस संसार में (जन्तुनाम ) प्राणियों का (इन्द्र.) इन्द्र (वा) अथवा (धरणेन्द्रः) धरपेन्द्र (वा) अथवा (चक्री:) चक्र वर्ती भी (शरणम्) रक्षक (नास्ति) नहीं है (पूरः नरः) दूसरे आदमी का (क:) क्या

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