Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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भोपाल चरित्र दसम् परिच्छेद]
[५३७ १९९६८ -४ - ४७६९२कोश पुनः धनुष बनाना ४७६९२ x २००० = ६५९८४००० - ३१६६४५६६३ धनुष कम हुआ । यह अधोलोक सम्बन्धी हिसाब हुआ । अब उर्वलोक के विषय में विचार करें। सर्वार्थसिद्धि विमान से ऊपर १२ योजन पर ईप्रत् प्राग्भार नाम की ८वों पृथ्वी है। यह ८ योजन मोटी है ।
सर्वार्थसिद्धि के ऊपर १२ यो. है। १२४४ - ४८ कोश, ४८४ २०००५-६६००० धनुष हुए।
८ योजन मोटी आठवों भूमि है = Ex ४ = ३२ कोश X २००० - ६४००० धनुष
नोदधि वातवलब का बाहुल्य २ कोश४२००० = ४००० धनुष बनवात बलय का बाहल्य है १ कोश x २००० = २००० धनुष तनुवातवलय का बाहुल्य १५७५ धनुष ।
सबको धनुष जोड़ने पर ६६०००+ ६४०००+४००० + २००० - १५७५ - १६७५७५ धनुष ऊवलोक सम्बन्धी ।
अधोलोक सम्बन्धी ३१६६४६६६-२ धनुष दोनों का योग १६७५७५ + ३१६६४६६६२ - ३२१६२२४१३. धनुष कम करने से शेष त्रसनाली में त्रसजीव रहते हैं इस प्रकार विवेचन करने पर ३२१६२२४१ २ धनुष कम १३ राजू प्रमाण सनाली में असजीब रहते हैं ।
__ इस प्रकार लोक म्वरूप का चिन्तन करना लोक भावना है ।। ७० से ७८ || अब बोधि दुर्लभ भावना का वर्णन सुनिये श्रीपाल भूपाल भा रहे हैं
बोधि स्याएशन ज्ञान चारित्रप्राप्तिरञ्जसा । सा दुर्लभाऽत्र संसारसागरे सरतां नृणाम् ।।७।। यथा चिन्तामणेः प्राप्तिश्शर्म सन्दोहदायिनी।
मत्वेति च समाराध्यं रत्नत्रयमखण्डितम् ।।२०।। अन्वयार्थ-(दर्शनज्ञानचारित्रप्राप्तिः) सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र का पाना (बोधिः) बोधि (स्यात्) है (अत्र) यहाँ (संसारे) संसार में (सरताम् ) भ्रमण करते हुए (नणाम) मनुष्यों को (अजसा) सहसा (सा) वह बोधि (दुर्लभा) कठिन साध्य है (यथा) जिस प्रकार (शर्मसन्दोहदायिनी) सुरन समूह को देने वाली (चिन्तामणे:) चिन्तामणि रत्न का पाना (इति) इस प्रकार (मत्वा) समझकर (च) और (अखण्डितम्) अखण्ड ( रत्नत्रयम् ) रत्नत्रय (समाराध्यम्) आराधने योग्य है ।