Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रीपाल चरित्र दसम् परिच्छेद लोक है । मेरु प्रमाण अर्थात् १ लाख ४० योजन प्रमाण मध्यलोक है। सातवों पृथ्वी के नीचे १ राजू में निगोद है।
मेरुपर्वत १००० योजन पृथ्वी के अन्दर है एवं १६ हजार बाहर है तथा ४० योजन की चूलिका है। चूलिका के ऊपर एक बाल प्रमाण अन्तर छोड़कर सौधर्म स्वर्ग है।
यहाँ प्रश्न होता है कि लोक की ऊँचाई १४ राजू है। उसमें से सात राजू प्रमाण अधोलोक बतलाया है और सात राज प्रमाण हो ऊर्बलोक बतलाया है, इस दशा में मध्यलोक की ऊँचाई १ लाख ४० योजन अधोलोक में सम्मिलित है या ऊर्ध्वलोक में अथवा दोनों से भिन्न है ?
इसका उत्तर निम्न प्रकार है
मेरुपर्वत के तल से नीचे सात राजू प्रमाण अधोलोक है और तल से ऊपर सात राजू ऊर्ध्वलोक है । अत: मध्यलोक की ऊँचाई ऊर्बलोक में ही सम्मिलित है । सात राजू की तुलना में १ लाख ४० योजन प्रमाण तो पर्वत के सामने राई के बराबर है। अतः ऊर्ध्वलोक की ऊँचाई १ लाख ४० योजन कम सात राजू है।
सम्पुर्ण लोक ३४३ धन राजू प्रमाण ५ प्रकार के स्थावर एकेन्द्रिय जीवों से सर्वत्र भरा है परन्तु त्रस जीव असनाली के अन्दर ही होते हैं। प्रसनाली का प्राकार छाल लपेटी लकड़ी के समान बताया है । इसी में त्रस जीव रहते हैं। ___ यहाँ शङ्का-क्या असनाली में सर्वत्र जीव रहते हैं ?
उत्तर--सामान्यापेक्षा यह कथन है। तिलोयपण्णत्ति में विशेष रूप से कथन किया है -
लोय बहुमझ देसे तम्मि सारं ब रज्जूपदर जुदा ।
तेरस रज्जूस्सेहा किंचूणा होदि तसणाली ।।६।। द्वि. अधि. ।।
अर्थ-वृक्ष में उसके सार की तरह लोक के ठोक मध्य एक राज लम्बी एक राजू चौड़ी और कुछ कम १३ राजू ऊँची त्रसणाली है।
शङ्का-बसणाली को कुछ कम १३ राजू कैसे कहा ?
अर्थ–सातवीं पृथ्वी ८ हजार योजन मोटी है (त्रि. सा. गा. १७४) उसके ठीक मध्य में नारकियों के विले बने हुए हैं । उन विलों की मोटाई । यो. है । इस मोटाई को समच्छेद कर पृथ्वी को मोटाई में से घटाने पर २४००० - ४ - २३६९६ योजन शेष बचा ।
२३६६६. इसको ग्राधा कि
'योजन इसके कोष बनाना
इसको अाधा किया तो २३६१६ - २ - २३६९६ ४ ३ - १९६८ योजन इसके कोष बनाना