Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद]
[ २२३ (प्राह) बोला (भो) हे (मातः) माँ (ते) आपके (प्रसादतः) प्रसाद से कृपा से (अहम) मैं (देशान्तरम् ) विदेश (गत्वा) जाकर (सद्धनम्) लक्ष्मी सहित (शीघ्रम्) जल्दी ही (आगमिष्यामि) आजाऊँगा।
भावाथ प्रिया से विदा होकर श्रीपाल अपनी माता पास गया। विनय पूर्वक के चरणों में नमस्कार किया। भक्ति पूर्वक नमन कर बिनय से कहने लगा, हे मात मैं अापके पुनीत पाशीर्वाद से विदेश व्यापार के लिए जाना चाहता हूँ। वहां से शीघ्र धनोपार्जन कर वैभव सहित आऊँगा ।।३।।
प्रावेशं वेहि मे शीघ्र गमनाथ महामते ! पूजा श्रीजिन सिद्धानां कर्त्तव्या च विशेषतः ॥३६॥ रक्षा बध्वाश्च ते मातः धर्मकर्म विदाम्बरे । धर्मध्यानेन दानेन कर्त्तव्यान्तोऽत्र मन्दिरे ॥३७॥
अन्वयार्ग-(महामते ! ) हे महाबुद्धिशालिनि ! (अत्र) यहाँ (मन्दिर) महल में (विशेषतः) विशेष रूप से (श्री जिन) श्री जिनेन्द्र भगवान की (च) और (सिद्धानाम्) सिद्धों को (पूजा) पूजा (कर्तव्या) करना चाहिए (मातः) हे मातेश्वरि ! (धर्मकर्मविदाम्बरे) हे धर्म कर्म करने में चतुर (धर्मध्यानेन ) धर्मध्यान पूर्वक (च) और (दानेन) दान करते हुए (ते) अापको (वध्वाः) बहूको (रक्षा) रक्षा (कर्तव्यान्तः) करते रहना । यही मेरी प्रार्थना है।
भावार्थ:-श्रीपाल महाराज अपनी मातेश्वरी से विनय पूर्वक प्रार्थना कर रहे हैं। हे महाविदुषी, माते आप यहीं महलों में अपनी वधू के साथ विराजे। प्रतिदिन श्री जिनेन्द्रभगवान की पूजा करें, विशेषरूप से श्री सिद्धचक्र की पूजा, आराधना कर धर्म प्रभावना करती रहें। साथ ही अपनी बघ-मैंनासुन्दरी की रक्षा करें। उसे धैर्य बंधाकर धर्मध्यान, दान आदि कर्तब्यपालन करती हैं। क्यों कि आपके द्वारा किये गये पूजा-दानादि और सिद्धभक्ति के प्रसाद से मेरा कार्य भी निविध्न हो सकेगा। अत: आप सास बहू प्रेम, भक्ति से विराजे । मैं बारह वर्ष के अन्त तक नियम से आपका दर्शन करूंगा ॥३६-३७।।
पुत्र वाक्य समाफण्यै सा सती कमलावती । मत्त्वा तन्निश्चितं चित्ते गमने चतुराशया ॥३॥ संजगाव सुतं पुत्र श्रण त्वं गुणमन्दिर।
सर्वथा चेत् त्वया भद्र गन्तव्यं साम्प्रतं सुधीः ॥३६॥
अन्यायं--(चतुराशया) अभिप्राय समझने में चतुर (सा) उस (सती) शोलवती माता (कमलादती) कमलावती ने (पुत्र वाक्यम् ) पुत्र के वचन को (समाकर्ण्य) सुनकर