Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र प्रष्टम परिच्छेद ]
परिग्रहेषु सर्वेषु प्रमाणं संविधीयताम् ।
येन जीवो भवेदुः सन्मुखीव भवे भवे ॥ ३३॥
अन्वयार्थ - ( सर्वेषु परिग्रहेषु) सम्पूर्ण परिग्रहों में (प्रमाणं ) परिमाण या सीमा ( संविधीयताम् ) कर लेनी चाहिये (येन) उस परिग्रह प्रमाण रूप अणुव्रत के प्रभाव से (जीवी) जीव ( भत्रे गवे) भव भव में (उच्च) श्रेष्ठ ( सन्मुखी भवेत् ) सम्यग्दर्शन आदि गुणों के उन्मुख रहे ।
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भावार्थ - श्रावकों को परिग्रह का प्रमाण भी अवश्य करना चाहिये जिससे परिग्रह में आसक्ति पैदा न होवे । बाह्य परिग्रह के १० भेद हैं- क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य (चाँदी), सुवर्णं, धन, धान्य, दासो, दास, कुप्य, भाँड इन सभी का परिमाण करने से इच्छाओं का निरोध होता होती है और जीभ में इस इरिग्रह परिमाण व्रत के संस्कार से श्रेष्ठ सम्यग्दर्शन यदि गुणों के सम्मुख रहकर मोक्ष मार्ग में रहता है ||३२||
सर्वदा च सता त्याज्यं पुरुप संतापकाररणम् । रात्रि भोजनमाचमसित विशुद्धये ॥३३॥
चर्मवारिघृतं तैलं हिंगुसंधृत चर्म च । Fantarvafai भोज्यं वर्जनीयञ्च सर्वदा ||३४||
प्रन्वयार्थ - ( सता ) सत्पुरुष के द्वारा (पापसंतापकारणम् ) पापवर्धक संतापकारक (रात्रि भोजनमात्रोत्र ) रात्रि भोजन मात्र सर्वत: ( सर्वदा त्याज्यं ) सदा त्याज्य है ( मांसव्रत विशुद्धये) मांस त्याग व्रत की विशुद्धि के लिये (चर्मवारिघृतं तैलं ) चर्म में रखे जल, घृत, और तेल ( ) और (चमसंतहिंगु) चमड़े में रखो हींग ( स्वभावात् चलितं भोज्यं ) स्वभाव से चलित अर्थात् विकृत अमर्यादित भोज्य पदार्थ ( सवेदा) सदा ( वर्जनीयं ) छोड़ने योग्य है अर्थात् सत्पुरुषों को अवश्य इनका त्याग करना चाहिए ।
मायार्य सत्पुरुषों को रात्रि भोजन का सर्वथा त्याग करना चाहिये। क्योंकि रात्रि भोजन करने वाला हिंसा से नहीं बच सकता है। सूर्य के प्रकाश के प्रभाव में जो सूक्ष्म से सूक्ष्म ate हैं वे बाहर निकलकर वायुमंडल को व्याप्त कर लेते हैं और भोजन की सुगन्धी को पाकर उसमें गिरकर मर जाते हैं । तथा रात्रि में एलेक्ट्रिक के प्रकाश से प्राकृष्ट हुए सूक्ष्म मच्छर फर्तिगे श्रादि भी भोजन में गिरते हैं इसलिये रात्रि में खाया हुआ अन्न मांस पिण्ड के तुल्य हो जाता है । अतः मांस त्याग व्रत को विशुद्धि के लिये पाप वर्धक तथा नरकादि के दुःखों को उत्पन्न करने वाले रात्रि भोजन का त्याग अवश्य करना चाहिये । पुनः चमड़े की थैलियों में रखा हुआ जल घी अथवा तेल, होगड़ा आदि भी श्रावकों को प्रयोग में नहीं लाना चाहिये । चमड़े की चरस में लाया हुआ पानी पीने वाले को मांस भक्षरण का दोष याता है। साथ ही अमर्यादित वस्तु का सेवन करने से भी मांस त्यानव्रत में दोष लगता है। अचार, मुरब्बा, बड़ी