Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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४५.२]
[श्रीपाल चरित्र अष्टम परिच्छेद अन्वयार्थ (शिवकारणम्) मोक्ष के कारण भूत (एतासां) इन ग्यारह प्रतिमाओं के (लक्षणम् चापि ) लक्षण भी (अह) मैं (प्रवक्ष्ये ) कहूँगा (भो श्रीपालप्रभुसत्तम) हे उत्तम गुणों के धारी राजन् ! (त्वं शृण ) तुम सम्यक् प्रकार सुनो।
भावार्थ -आचार्य कहते हैं कि श्रावकों को ग्यारह प्रतिमाएँ भी प्रात्मशुद्धि का साधक होने से परम्परा से मोक्ष का कारण है । उन ग्यारह प्रतिमानों का लक्षण मैं यथाक्रम कहता हूँ, हे श्रेष्ठ गुणों के धारी राजन् ! तुम एकाग्रचित्त होकर सुनो ।।७।।
जिनोक्त सप्ततत्वानां श्रद्धानं दर्शनं मतम् ।
पञ्चविंशति-दोषाः परिव्यक्तं त्रिशुद्धितः ॥७६॥
अन्वयार्थ:-(जिनोक्त सप्त तत्त्वानां) जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे गये सप्त तत्त्वों का (पञ्चविंशतिदोषाद्य : परित्यक्त) २५ दोषों से रहित (त्रिशुद्धित:) मन वचन काय की शुद्धिपूर्वक (श्रद्धानं) श्रद्धान करना (दर्शनम् ) दर्शन प्रतिमा है ।
भावार्थ-जिनेन्द्र कथित जीव, अजीव, प्रास्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सप्त तत्वों का यथोचित श्रद्धान करने वाला दर्शन प्रतिमा धारी है ऐसा जिनागम में बताया है । तत्त्व श्रद्धान में रढ़ता और पवित्रता भी होनी चाहिये इस बात का संकेत करते हुए प्राचार्य कहते हैं कि शङ्का आदि २५ दोषों से रहित मन, वचन, काय की शुद्धि पूर्वक जिनोक्त तत्व का दृढ़ श्रद्धान होने का नाम ही दर्शन प्रतिमा है ।।७६।। वे २५ दोष कौन-कौन हैं इसका उल्लेख प्रागे करते हुए कहते हैं
: मूवनयं मवाचाष्टौ तथानायतनानिषट् ।
' अष्टौ शङ्कादयाश्चेति हादोषाः पञ्चविंशतिः ॥७७॥
अन्वयार्य (मूढत्रयं) तीन मूढता (मदाचाष्टी) और पाठ मद (तथा) तथा (षट्अनायतनानि) छः अनायतन (च) और (अष्टौ आठ (शङ्कादयाः) शङ्का आदि दोष (इति) इस प्रकार (पञ्चविंशति) २५ (दग् दोषाः) सम्यग्दर्शन के दोष हैं ।
भावार्थ--सम्यग्दर्शन के २५ दोषों का निर्देश करते हुए आचार्य कहते हैं कि तीन भूदता, आठ मद, छः अनायतन, और माठ शङ्कादि दोष ये २५ दोष हैं जो सम्यग्दर्शन को मलिन करते हैं ।
मूढ़ता--मूहता का अर्थ अज्ञानता है। उस अज्ञानपूर्ण प्रवृत्ति को मूढ़ता कहते हैं जो सम्यग्दर्शन को मलिन करतो है । यह मूढ़ता तीन प्रकार की है -
(१) लोकमुढ़ता - धर्म लाभ आदि मानकर-नदी या समुद्र आदि में स्नान करना बालु या पत्थर आदि का ढेर लगाना. पर्वत से गिरना, अग्नि में जलना आदि लोक मूढ़ता है। यहाँ यह ध्यान रखें कि धर्म मानकर आत्मशुद्धि का कारण मानकर नदी आदि में स्नान करना मूढ़ता है पर मात्र शरीर शुद्धि के लिये यदि नदी में कोई स्नान करता है तो वह मूद नहीं है ।