Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 526
________________ [४८६ श्रीपाल चरित्र नवम् परिच्छेद] विनय से पूजा होने पर पुनः एक महाअयं भी चढावें । तदनतर पुनः स्वर्णथाल में अष्टद्रव्यों को संजोकर-मिलाकर महाबर्ष लें, गीतवादित्र नृत्यादि करते हुए, जयमाला पटते हुए तीन प्रदक्षिणा देखें । उत्साह और उमङ्ग से गीतादि द्वारा स्तुति पढें । पाप को नाश करने वाला श्री सिद्धचक्र का स्तवन करें। पन: १०८ जाति पुष्प लेकर यन्त्र के ऊपर १०८ जाप करना चाहिए । जातिपुष्प नहीं मिले तो अन्य, सुगन्धित, चमेली, जुही आदि कोई भी मनोहर चित्तरजक पुष्षों से जाप देना चाहिए । इस प्रकार बुद्धिमानों को प्राठों दिन श्री सिद्धचक्र विधान करना चाहिए ।।६८ से ७७॥ तथा श्रुतं जिनेन्द्रोक्तं गुरुरणां पादपङ्कजम् । समाराध्य जगत्सार सम्पदा सुखदायकम् ॥७॥ एवं विधि विधायोच्चैरष्टम्यां च दिने.दिने । पूर्णिमादिनपर्यन्त विधिरेष विधीयते ॥७६॥ अन्वयार्थ—(तथा) उसी प्रकार (जिनेन्द्रोक्तम् ) जिनदेव कथित (श्रुतम्) आगम को (जगत्सार) संसार का सारभूत (सुखदायकम् ) सुख को देने वाली (सम्पदाम् ) सम्पत्ति देने वाले (गुरुणाम ) गुरुत्रों के (पादपङ्कजम ) चरण कमलों को (समाराध्य) आराधना करके (अष्टम्यां) अष्टमी से (च) और (पूर्णिमापर्यन्तम् ) पूर्णिमा तक (दिने-दिने) प्रतिदिन (एवं) इस प्रकार (विधिम) विधि (विधाय) करके (उच्चः) विशेषरूप से (एषः) यही विधि (विधीयते) करना चाहिए । भावार्थ-इसी प्रकार सुख सम्पदा प्रदान करने वाले तथा ज्ञान के प्रकाशक श्री जिनेन्द्र भगवान का आगम और गुरु चरणारविन्द भी समाराधनीय है। इस प्रकार अष्टमी से प्रारम्भ करके पूणिमा पर्यन्त प्रति दिन उपयुक्त विधि से विधि-विधान करना चाहिए । प्रति दिवस विशेष-विशेष उत्साह और आनन्द से करना चाहिए । पुनः क्या करना चाहिए वह आगे बताते हैं ।।७८, ७६ ।। कार्य जागरणं रात्रौ पूणिमायां च सज्जनः । महा सङ्.घेन संयुक्त निभान महोत्सवः ॥१०॥ उपवासरिदं कार्यमष्टभिर्व तमुत्तमम् । एकान्तरेण वा प्रोक्तं यथाशक्ति च सूरिभिः ॥१॥ अष्टौ दिनानि संधार्य ब्रह्मचर्य सुनिर्मलम् । सचितं वजनीयं चारम्भस्त्यज्यते बुधैः ।।८२॥ प्रतिपद्दिवसे सिद्धचक्र प्रपूज्य भक्तितः । बहुद्रव्यैर्महाध्य पक्वान्नश्च मुक्तये ।।८३॥

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