Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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मोपाल चरित्र दसम् परिच्छेद ]
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(श्रीपाल : ) श्रीपाल ( गृहम् ) घर ( ग्रागत्य ) आकर ( आष्टाकि महापर्वे) अष्टाह्निका महापर्व में (अन्तः पुरस्समन्वितः ) अपनी सर्व अन्तःपुर की रानियों सहित ( महापरिच्छेः ) महान वैभव के (सार्थम्) साथ (सः) उस राजा ने ( महोत्सवम् ) महाउत्सव (अकारयत् ) करवाया ( तदा उस समय (चम्पापुरीमध्ये ) चंम्पापुरी में ( ध्वजादिभिः) पत्ताका तोरणद्वार, गृह बाजार की ( महाशोभाम् ) अत्यन्त साज सज्जा ( कारयित्वा ) करवाकर ( सुधीः) विज्ञानी श्रीपाल ने (अष्टौदिनानि ) आठों दिन (विधिपूर्वकम् ) विधि अनुसार (सिद्धचक्रस्य) सिद्धचयन्त्र की (च) और ( जिनेन्द्र प्रतिमानाम् ) श्री जिनेन्द्र विम्बों का ( भक्तितः ) भक्तिभाव से (महत्) महान ( पञ्चामृत प्रवाहैः ) पञ्चामृतों के द्वारा ( स्नपनम् ) महामस्तकाभिषेक ( विधाय ) करके ( श्रष्टोदिनानि ) प्राठ दिन पर्यन्त (उच्च) ( महान ( महोत्सव : ) उत्सवों के साथ (पूजाम् ) पूजा ( स चकारः ) की ।
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भावार्थ - श्री गुरुदेव से अपने पिछले भव श्रवण कर और पुनः श्री गुरुमुखारविन्द से धर्म श्रवण कर, महा परमपावन, त्रिलोक चूडामणि सारभूत सिद्धचकनत लेकर श्रीपाल - महामण्डलेश्वर अपनी पारी राजधानी में माया पूरी अन्तःपुर और परिजन पुरजनों के साथ उसने अष्टाका महापर्व में पुनः महामहोत्सव करने की घोषणा की । सम्पूर्ण नगरी नवोढा सी सजायो गई । घर-घर द्वारे द्वारे ध्वजा तोरण लगाये गये । मङ्गल कलश स्थापित कराये । घर, गली, बाजार सर्वत्र अनुपम शोभा करायी। जिनालयों की शोभा तो अवर्णनीय थी। कलश, ध्वजा, तोरण, माला घण्टा, झालर आदि नाना प्रकार के उपकरणों से अलंकृत किये गये । अपूर्व छवि थी जिनमन्दिरों की । आठों दिन अनेक उत्सवों सहित सिद्धचक्र और जिनबिम्बों का पञ्चामृतों के प्रवाह से विशाल कलशों से महाभिषेक किया गया । विधिपूर्वक आगमानुसार पञ्चामृताभिषेक कर ही नर-नारियाँ पूजा करती थीं। इस प्रकार आठों दिन अद्भुत वैभव से यह पर्वोत्सव मनाया ।। २-३-४-५॥
सोपवासादिकं सर्व पुनस्तद्व्रतमुत्तमम् । कृत्वाचोद्यापनं चक्रे महाविभवशक्तितः ॥ ६॥
अन्वयार्थ - (तत्) वह ( उत्तमम् ) उत्तम ( व्रतम् ) व्रत ( सोपवासादिकम् ) उपवासादि सहित ( सर्वम् ) पूर्णत: ( कृत्वा) करके (पुनः) फिर ( महाविभवशक्तितः महान वैभवप शक्ति से ( ) और ( उद्यापनम् ) उद्यापन (च) किया।
भावार्थ--- श्रीपाल सम्राट ने इस सिद्धचक्रव्रत को पूर्णतः उपवास के साथ किया । अर्थात् उत्तम रीति से आठ उपवास कर पूर्ण किया । भक्ति और शक्ति से पुनः उद्यापन भी क्यों न होता ? अर्थात् पूर्ववत् पूर्ण वैभव और शक्ति से प्रानन्द से उद्यापन किया । उद्यापन का वर्णन आचार्य करते हैं। अगले प्रकरण में निम्न प्रकार देखें |१६||
तत्र श्रीमज्जिनेद्राणां प्रासादानुन्मतान् शुभान् । रहन तोरण संयुक्तान् ध्वजाद्यैः परिशोभितान् ॥१७॥