Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र दसम
परिच्छेद ]
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और चातुर्य में द्वितीय थी । साक्षात् धर्म की प्रतिमा ही थी। सभी पुत्रवन्ती थीं। कोई भी वन्ध्या नहीं थी । सभी सुन्दर, मनोहर वस्त्र और अलंकारों से शोभायमान थीं, सभी प्रपनेअपने पदानुसार कर्तव्यनिष्ठ और विनयशीला थीं । अन्योन्य के साथ प्रीति और वात्सल्य भाव संयुक्त थीं । सज धज वे प्रत्यक्ष कल्पलता सी प्रतीत होतीं थीं । दान, पूजा, व्रत, उपवास, त्याग आदि गुणों से तो वे ऐसी मालूम होती थीं मानों धर्म ही साकार रूप धारण कर आ गया है। वस्तुतः यह पुण्य का ही प्रभाव है । अपने-अपने पुण्य से वे साकार धर्म की पुतलियाँ थीं । मदनसुन्दरी के चार पुत्र अपूर्व सुन्दर और गुणज्ञ । वे क्रमशः १. पृथ्वीपाल २. भूपाल ३. सारधि और ४. चित्रक नाम वाले विख्यात हुए। इसी प्रकार मदनमञ्जूषा ने सात पुत्रों को जन्म दिया, गुणमाला ने वीरों में वीर महासुभट पाँच पुत्र उत्पन्न किये । अन्य रानियों से भी अनेक गुणमण्डिन बारह हजार आठ सौ ( १२८०० ) पुत्र हुए। ये सभी कुल के प्रकाशक सुन्दर प्रदीप थे। सभी गुण, कला, विज्ञानी और शक्तिशाली थे। प्रेम, बात्सल्य और स्नेह के प्रागार थे । पारस्परिक स्नेह से एक सूत्र में गुम्फित रत्नमाला समान शोभायमान होते थे । महाराजा श्रीपाल को अपूर्व गौरव और अपार प्रानन्द था । । १६ से २१ ॥
भूपतीनां सहस्राणि सेवन्ते स्म सुभक्तितः । श्रीपालं तु महाराजं किरीटादियुतानि च ॥२२॥ द्वादशोरू सहस्रारिंग गजाः प्रोत्तुङ्ग विग्रहाः । सर्व वस्तुशतैः पूर्णा रथाः पूर्ण मनोरथाः ॥ २३॥ नानादेश समुत्पन्नाः पञ्चवर्णे विराजिताः । श्राश्वा द्वादश लक्षाणि तस्याभवन् महीपतेः ॥ २४॥ atest द्वादश प्रोक्तास्तस्योच्चैस्सुभटोत्तमाः । शत्रूणां प्राशने तूराः क्रूराः वा यम दूतकाः ।।२५।। तथा देश सहस्राणि ग्रामकोटि युतानि च । सर्ववस्तु भृतान्युच्च निधाना नीवरेजिरे ॥ २६ ॥ सारसद् रत्न माणिक्य स्वर्णमुक्ता फलानि च । वर्ण्य ते केन तस्याऽत्र सागरस्येव पुण्यतः ॥२७॥ इत्यादि सम्पदां सारे स्सश्रीपालो महाप्रभुः । frosटकं महाराज्यं प्रकुर्वन् पालयन् प्रजाः ॥२८॥ सार भोग समान्युच्चैः प्रमदावृन्द सेवितः । भुञ्जानः पुण्यपाकेन चक्रवर्तीय निश्चलः ॥ २६ ॥