Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 551
________________ ५१४] [ श्रीपाल चरित्र दसम् परिच्छेद सार्द्धं मदनसुन्दर्या मुख्यया तस्य सम्भवा । साधिका सहस्राणि देव्यो भुवि गुणोज्वलाः ॥ १६॥ अबन्ध्याश्शुभगास्सर्वा वस्त्राभरण मण्डिताः । स्वपदे शर्मंदा नित्यं सत्या कल्पलतोपमाः ।। १७॥ दान पूजाव्रतोपेताः किं वर्ण्यन्ते हि तद्गुणाः । यास्वत्यो निजपुण्येन जाता वा धर्ममूर्तयः ।। १८ ।। पुत्रा मदनसुन्दर्याश्चत्वारो गुरणभूषिताः । पृथ्वीपालोऽथ भूपालास सारधिश्चित्रको भवत् ॥ १६ ॥ तथा मदनमञ्जूषा सासू सुत सप्तकम् । भू मालायां पञ्चपुत्रास्तुविक्रमाः ||२०| द्वादशैव सहस्राणि शतान्यष्टौ च शर्मदाः । पुत्रास्तस्य कुलोद्योतकारिणः प्रविरेजिरे ॥ २१ ॥ अन्वयार्थ - - ( मुख्यया) प्रधान ( मदनसुन्दर्या ) मदनसुन्दरी सहित ( तस्य ) उसके ( सम्मदाः ) यौवन के मद से युक्त (भुवि ) संसार में (गुणोज्वलाः ) गुणों से उज्ज्वल (भ्रष्टसहस्राणि श्राठ हजार (देव्यः) देवियाँ (साधिक।) उस मदनसुन्दरी से अतिरिक्त थीं ( सर्वाः ) वे सभी (सुभगा :) सुन्दरी (वस्त्राभरणमण्डिताः ) अद्भुत वस्त्राभरणों से अलंकृत ( अबन्ध्या ) पुत्रवन्ती ( नित्यम ) नित्य ही ( स्व पदे) अपने पद में ( शर्मंदा ) शान्ति दायक (सत्या : ) निश्चय ही ( कल्पलतोपमाः) कल्पलता स्वरूप ( दानपूजा व्रतोपेताः ) दान, पूजा, व्रतों से सहित (हि) निश्चय ही ( तदगुणाः) उनके गुणों का (किं) क्या (वर्ण्यन्ते) वर्णन करें ? (या) जो (सत्याः ) सतियाँ (निजपुण्येन ) अपने-अपने पुण्य से (वा) मानों (धर्ममूर्तयः) धर्म की साकार प्रतिमा ( जाता ) अवतरित हुयो । ( मदनसुन्दर्याः) मदनसुन्दरी के ( गुणभूषिताः) गुणों से विभूषित ( चत्वार: ) चार ( पुत्राः ) पुत्र थे ( पृथ्वीपाल : ) प्रथम पृथ्वीपाल (भूपाल: ) भूपाल, (सारवि: ) सारधी ( अथ ) एवं (चित्रकः ) चित्रक ( अभवन् ) हुए (तथा) उसी प्रकार (सा) उस ( मदनमञ्जूषा ) मदनमञ्जूषा ने ( सप्तकम् ) सात ( सुत) पुत्र ( असूत) खत्पन्न किये ( गुणमालायाम) गुणमाला से ( सुविक्रमाः ) पराक्रमी ( पञ्चपुत्राः ) पाँच पुत्र ( बभूवु ) हुए (च) और अन्य ( द्वादशैव ) बारह ही (सहस्राणि ) हजार (अष्टी ) श्राठ (शतानि ) सो ( तस्य ) उसके ( कुलोद्योतकारिणः ) कुल को प्रकाशित करने वाले (शर्मदाः) सुखदायी (पुत्राः) पुत्र ( प्रविरेजिरे ) विशेषरूप से शोभित हुए । मावार्थ - श्रीपाल कोटीभट महाराज के यौवनरूपी लावण्य से भरी सुख-शान्ति देने वाली, संसार में अपने गुणों से समुज्ज्वल, मदमाती अनि सुन्दरी, रूपराशि आठ हजार श्राज्ञाकारिरगी रानियाँ थीं। इनमें प्रमुख पट्टमहिषी-पटरानी मदनसुन्दरी थी । यह गुण, रूप

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