Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ श्रीपाल चरित्र नवम् परिच्छेद
पात्रदानं विधायोच्चैनिधानं सार सम्पदाम् । दीनादिभ्यस्ततो युक्त्या दातव्यं वसनादिकम् ॥ ८४ ॥ सज्जनैरसह कर्त्तव्यं भोजनं परमोदयैः । धूतं श्रीसिद्धचक्रस्य शुभमेतज्जगद्धितम् ॥ ८५॥
अन्वयार्थ - (च) और ( पूर्णिमायाम) पूनम की ( रात्री) रात में ( सज्जनैः ) सत्पुरुषों को ( महासङ्घन संयुक्त:) चतुविध संघ सहित ( जागराम ) जागरण (कार्यम ) करना चाहिए ( दान मान महोत्सव:) दान, सम्मानादि महाउत्सव पूर्वक ( इदम् ) यह व्रत ( अष्टभिः ) आठ ( उपवासः) उपवासों सहित ( उत्तमम् ) उत्तम ( व्रतम ) व्रत है (वा) अथवा ( एकान्तरेण ) एकान्तर उपवास करे ( सूरिभिः) आचार्यों ने (यथाशक्ति ) शक्ति के अनुसार करने को ( प्रोक्तम् ) कहा है। (च) और ( यष्टी ) आठों ( दिनानि ) दिनों में (सुनिर्मलम् ) महापवित्र (ब्रह्मचर्य) ब्रह्मचर्यवत ( सन्धार्यम् ) धारण करना चाहिए (बुधैः) विद्वद्जन ( सचित्तम् ) सचित वस्तु का ( वज्र्जनीयम) त्याग करें ( प्रारम्भम् ) प्रारम्भ भी ( त्यज्यते ) त्याग करते हैं (प्रतिपद्दिवसे) एकम के दिन (मुक्तये) मुक्ति के लिए ( बहुद्रव्ये :) बहुत द्रव्यों से ( महायैः ) अमूल्य वस्तुओं (च) और ( पक्वान्नैः) नानाविध सुन्दर नैवेद्यों से ( भक्तितः ) अत्यन्त भक्ति से ( सिद्धचक्रम ) सिद्धचक्र की ( प्रपूज्य ) पूजा करके, (सारसम्पदाम) उत्तम सम्पदा का ( निधानम् ) भाण्डार ( पात्रदानम् ) उत्तम सत्पात्रदान (उच्च) विधिवत ( विवाय) देकर ( ततो) पुनः ( युक्त्या ) युक्ति पूर्वक ( दीनादिभ्यः ) दोन अनाथों को यथायोग्य ( दसनादिकम) वस्त्र, भोजन प्रादि ( दातव्यम्) देना चाहिए। पुनः ( सज्जनेसह ) साधमियों के साथ (भोजनम ) भोजन - पारणा ( कर्त्तव्यम ) करना चाहिए। ( एतत् ) यह ( जगद्धितम् ) संसार का हितकारक ( शुभम ) शुभरूप ( परमोदयः) परम उदय का कर्ता ( श्रीसिद्धचक्रस्य ) श्री सिद्धचक्र विधान का ( ब्रसम ) व्रत है ।
भावार्थ - अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक खूब ठाट-बाट, नृत्यगान, वाद्य सहित, शुद्ध, उत्तम अनेकविध सामग्रियों से श्री जिनभगवान और श्री सिद्धचक यन्त्र की अपार भक्ति से पूजा करें। पुनः पूरणमा की रात्रि को चतुविध संघ सहित साधर्मी नर-नारियों को आमन्त्रित कर जागरण करें। इस समय भजन, कीर्तन, नृत्य आदि करें। श्रागत जनों को दान-सम्मान कर सन्तुष्ट करें । आचार्यों ने माठ दिन उपवास करना उत्तम विधि कही है, एक उपवास एक पारणा करना मध्यम रोति बतलाई है फिर भी यथाशक्ति पालन करने की अनुज्ञा दी है। आठ 'दिन एकाशन भी कर सकते हैं, आठों दिन निर्मल शुभ भावों से ब्रह्मचर्यव्रत पालन करें। विद्वानों ! को इन दिनों में सचित्त वस्तुओं का यथा कच्चा पानो, बिना उबाली तरकारी आदि का त्याग ! करना चाहिए। सर्वप्रकार के प्रारम्भ व्यापार-धन्वें का त्याग करना चाहिए । प्रतिदिन महान् भक्ति से श्रीसिद्ध विधान की पूजा करनी चाहिए। पूजा में अमूल्य रत्नादि, सुन्दर, शुद्ध प्राशुक फलादि व्यञ्जनादि एवं अनेक प्रकार उपकरणादि चढाना चाहिए । मुक्ति प्रदाता यह पूजा भव्यों को महाहितकारी और सुखकारी है । तदनन्तर प्रतिपदा के दिन श्रीसिद्धच पूजा महावैभव से करें । पुनः चार प्रकार का, उत्तम, मध्यम, जघन्य पात्रों को प्राशुक, शुद्ध दान
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