Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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पाल चरित्र अष्टम परिच्छेद
वाह्य दविध प्रोक्तं परिग्रहगरणेषु च ।
अन्तश्चतुर्दशग्रन्थाः विरक्तो मवमो मतः ।।६१॥
अन्वयार्थ- (वाह्य ) वाह्य (परिग्रहगणेषु) समस्त प्रकार के परिग्रहों में (दविधप्रोक्त) दशभेद कहे गये हैं (च) और (अन्तश्चतुर्दशानन्थाः ) अन्तरङ्गपरिग्नह के चौदह भेद [कहे गये हैं] (विरक्तो) उक्त २४ प्रकार के परिग्रहों से विरक्त रहने वाला, नवम परिग्रह त्याग प्रतिमाधारी कहलाता है ।
मावार्थ जो १० प्रकार के वाह्म और १४ प्रकार के अन्तरङ्ग सभी प्रकार के परिग्रहों से एक देश विरत है, किसी भी वस्तु में मू भाव जिसके नहीं है, वह, परिग्रह त्याग प्रतिमाधारी श्रावक कहलाता है । जो पहनने के लिये धोती, दुपट्टा आदि तथा सोने के लिये शैया बिस्तर भोजन के लिये पात्र और जीव रक्षण के लिये रूमाल आदि रखता है, उनका भी यथाशक्ति प्रमाण कर लेता है और शेष सभी प्रकार के क्षेत्र, वस्तु (मकानादि) हिरण्य (चांदी) सुवर्ण, धन, धान्य, दासी, दास, कप्य (सिल्क के वस्त्रादि! भाण्ड (चर्तन) आदि परिग्रहों का नवकोटि से त्याग कर देता है, गृह चैत्यालय में रहता है, निमंत्रण से भोजन करता है अपने कुटुम्बीजनों के साथ मोह भाव नहीं रखता है उनके साथ सहवास नहीं करता है, धर्मध्यान में सदा तत्पर रहता है वह नवमी परिग्रह त्याग प्रतिमाधारी श्रावक है । रत्नकरण्ड श्रावकाचार में भी कहा है -
"बाह्य षु दश सुवास्तुषु ममत्वमुत्सृज्य निर्ममत्वरलः ।
स्वस्थ: सन्तोषपर: परिचितपरिग्रहाद्विरतः ।।"
जो मनुष्य बाह्य दश प्रकार के परित्रहों से सर्वथा मगता छोड़कर निर्मोही होकर मायाचार रहित परिग्रह को आकांक्षा का त्याग करता है वह परिग्रहत्याग प्रतिमाधारी कहलाता है । अन्तरङ्ग परिग्रहों में अनन्तानुब धी की ४ और अप्रत्याख्यानावरण की ४ इन पाट प्रकार के कषायों के उदय का उसके अभाव होता है । वह माया, मिध्यात्व, निदान रूप मल्यों से रहित सरल परिणामी होता है ।।६५|| इस प्रकार नवम प्रतिमा का स्वरूप बताते हैं - अत्र अनुमति त्यामनामक दशमी प्रतिमा का स्वरूप बताते हैं
सावद्यारंभके),विवाहादिषुकर्मषु ।
ददात्यनुमति व स च स्याद् दशमोगृही ॥२॥
अन्वयार्थ--(मायद्यारम्भकेषु) पापयुक्त प्रारम्भ आदि कार्यो में (विवाहादिप कर्मषु च ) और विवाहादि कार्यों में (अनुमतिः नव ददाति) अनुमति नहीं ही देता है (स गृही) वह श्रावक (दशमो स्यात् ) दसवी प्रतिभाधारी है।
भावार्थ-दशवों अनुमतित्यागप्रतिमाधारी श्रावक पाप युक्त प्रारम्भादि कार्यों में तथा विवाहादि कार्यों में अनुमति भी नहीं देता है। वह संकल्पी हिंसा, आरम्भी हिसा, उद्योगी हिंसा और विरोधि हिंसा रूप नारों प्रकार की हिंसा का नवकोटि से त्याग कर देता है किन्तु