Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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परिच्छेद ]
भष्टो बभूव कुष्टाङ्गः केन दुष्कर्मणा भूवि । समुद्रे पातिते वैश्यैः केनातिनिद्यकर्मणा ||४|| मातङ्गी घोषितश्चाहं चाण्डालेश्चण्डकर्मभिः । केन पुण्येन संशुद्धो जातोऽहं राजसत्तमः ||५| सार्द्धं मदनसुन्दर्या मे कि स्नेहस्य काररणम् । सत्सर्व पूर्व जन्मत्त्व सुधी में वक्तुमर्हसि ॥६॥
श्रीपाल चरित्र नवम,
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अन्वयार्थ---- (भगवन ) हे भगवन् ! ( अहम् ) मैंने ( केन पुण्येन ) किस पुण्य से ! अति ) बहुत ( शैशवे) बाल्यकाल में ( राज्यम ) राज्य ( प्राप्तम) पाया (च) और (कोटिभटः ) कोटीभट (जात) हुआ, पुनः ( केन पापेन ) किस पाप से ( राज्यतः ) राज्य से ( भ्रष्टः ) च्युत ( सूत्र ) हुआ, ( केन) किस ( दुष्कर्मणा ) कुकम से ( भुवि ) भूमण्डल पर ( कुष्ठाङ्गः ) कोढ पीडित शरीर हुआ तथा (क) किस (अधिकरण) वीचकर्म से अत्यन्त नीचकर्म से ( वेश्ये :) व्यापारी धवलसेठ द्वारा (समुद्र ) सागर में (पातितः ) डालागया (खण्ड कर्मभिः) प्रचण्ड दुष्कर्म द्वारा ( चाण्डालः) चाण्डालों द्वारा ( ग्रहम् ) मैं ( भावङ्ग) महतर ( घोषितः) कहा गया तथा (केन ) किरा (पेन) पुण्य से ( ग्रहम् ) में ( राजसत्तमः) राजाओं में श्रेष्ठ ( संशुद्धः) शुद्ध (जात:) हुआ, ( मदनसुन्दर्या ) मदनसुन्दरी के ( सार्द्धम ) साथ (मे) मेरे (स्नेहस्थ ) प्रेम का ( कारणम्) कारण ( किम ) क्या है ( सुधी ! ) हे सद्बुद्धे ! ( तत्सर्वम. ) वह सब ( पूर्व जन्मत्वम् ) पूर्वजन्म का हेतूपना आप (मे) सुभे ( वक्तुम ) कहने के लिए (हसि) समर्थ हो, अतः कहिए ।
भावार्थ - महामण्डलेश्वर श्रीपाल कोटिभट श्रीगुरु से अपनी भवावली ज्ञात करने के लिए प्रश्न करता है और श्रीगुरुदेव से उत्तर पाने के लिए आग्रह करता है । वह सविनय नमन कर पूछता है । हे भगवन् ! किस पुण्योदय से मुझे अत्यन्तलघु शिशु अवस्था में ही राज्य प्राप्त हुआ ? तथा कोटिभट कहलाया । पुनः किम पाप से राज्यच्युत होना पड़ा, पाया राज्य भी छोड़ना पड़ा ? किस पापकर्म से शरीर में कुछव्याधि हुई ? कौन ऐसा निद्य खोटा कर्म किया जिससे धवलसेठ बनिया ने समुद्र की उत्तालतरङ्गों की गोद में सुलाया । अर्थात् सागर में गिराया ? पुनः किस पुण्य से तैरकर पार हुआ और उत्तम राजा हुआ, पुन: किस पापोदय सेप्रचण्ड नीच कर्म से चाण्डालों द्वारा मातङ्ग घोषित किया गया ? पुनः शुद्ध होने और राजसत्ता पाने का क्या हेतु है ? मदनसुन्दरी के प्रति प्रगाह स्नेह का कारण क्या है ? हे सुबुद्ध ! विमल ज्ञानने ! यह सर्व पूर्व जन्म की करनी आप मुझे समझाने में समर्थ हैं कृपा कर समझाइये । इन प्रश्नों के समाधान से पुण्य-पाप का उपार्जन, उस का फल और उससे भय वैराग्य प्राप्त होगा ||३ से ६ ||
तत् समाकर्ण्य सम्प्राह मुनीन्द्रः श्रुतसागरः ।
शृण त्वं भो प्रभो वक्ष्ये सर्व श्रीपाल ते भवम् ॥७॥