Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ श्रीपाल चरित्र अष्टम परिच्छेद
मियार कलशदप्पण वियरणधय चामरादवत्तमहा | व मङ्गलाणि यसियाणिपत्तेयम् ॥
अर्थ-भृंगार ( झारी), कलश, दर्पण, व्यजन (पंखा ), ध्वजा, चमर, छत्र सुप्रतिष्ठ ( स्वस्तिक या साथिया ) ये अष्टमङ्गल द्रव्य हैं ।
इसी प्रकार शिक्षामा भी चढ़ानी चाहिए। मंदिर के शिखर पर ध्वजा अवश्य चढ़ानी चाहिये। कहा भी है
"प्रासादे ध्वज निर्मुक्ते पूजा होम जपादिकम् । सर्व विलुप्यते यस्मात्तस्मात्कार्यो ध्वजच्छ्रयः ॥
जिस मन्दिर में शिखर पर ध्वजा नहीं है उस ध्वज रहित मन्दिर में की गई पूजा, प्रतिष्ठा, होम जपादि सभी व्यर्थ जाते हैं इसलिये ध्वजा अवश्य चढ़ानी चाहिए ।
वसुनन्दी श्रावकाचार में शिखर पर पताका लगाने का फल बताते हुए आचार्य लिखते हैं-
"विजय पडा एहि परो संगाममुहेसु बिजइओ होइ । छक्खण्डविजयणाहो पिडिवक्खो जसस्सीय । "
अर्थ --- जिन मन्दिर में विजयपताकाओं को देने से मनुष्य संग्राम के मध्य विजयी होता है तथा षट्खण्डरूप भारतवर्ष का निष्प्रतिपक्ष स्वामी और यशस्वी होता है । पुनः छत्र और चमर चढ़ाने का फल बताते हुए आचार्य कहते हैं कि
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छत्ते एयछत्तं भुञ्जः पुहवी सबत्तपरिहोणो । चामरदारणेण तहा विज्जिज्जइ चमरणिवहेहिं ||
अर्थ – छत्र प्रदान करने से मनुष्य शत्रु रहित होकर पृथ्वी को एक छत्र भोगता है तथा चमरों के दान से चमरों के समूहों के द्वारा परिविजीत किया जाता है । अर्थात उसके ऊपर चमर ढोरे जाते हैं ।
इसी प्रकार सिहासन चढ़ाने से तीन लोक का प्रभुत्व प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त होती है । ये सभी उपकरण वीतराग प्रभु के जिनालय में अवश्य चढ़ावें, इनसे वीतरागता का प्रभाव अथवा जिनालय में सरागता का प्रवेश नहीं होता है । जिनालय समवशरण का प्रतीक है । जब समवशरण में ये सभी वस्तुएं रहती हैं तो जिनमन्दिर में इनको रखना आगमानुकूल है । वस्तुतः विभूतियों के बीच भी विरक्त रहना ऐसी शिक्षा देने के लिये या उत्कृष्ट वैराग्य को जगाने के लिये ही समवशरण को इन्द्र ने अनेक प्रकार से सुसज्जित किया था। पुनः जिनालय यदि सुन्दर सुहावना आकर्षक होगा तो अधिक लोग मन्दिर में आकर बैठेंगे और अधिक लोगों को बीतराग प्रभु के दर्शन का लाभ मिल सकेगा अतः जिनालय को अलंकृत करना ही चाहिये । यह सम्यग्दर्शन के प्रभावना अङ्ग को पुष्ट करने वाला है अतः श्रात्मगुणों की सपुष्टि के लिये भी आवश्यक है ।