Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्रीपाल चरित्र अष्टम परिच्छेद ]
[४४५
से सहित हैं तथा भव्य जीवों को संसार समुद्र से पार करने के लिये जहाज के समान हैं वे ही उत्तम पात्र हैं ऐसा समझना चाहिये ।।५४।।
तथा सुश्रावकः पात्रं मध्यमं श्राविकापि च ।
सम्यक्त्व व्रत संयुक्तो जैनधर्मप्रपालकः ॥५५॥
अन्वयार्थ -(सम्यक्ब) सम्यग्दर्शन (व्रत) पांच अण प्रत, तीन गुणद्रत, और चार शिक्षाव्रतों से (संयुक्तो) सहित है ऐसा (सुश्रावकः श्राविकापि च) श्रेष्ठ श्रावक और श्राविका भी (जैनधर्मप्रपालकः)जैन धर्म के प्रपालक (मध्यम पात्र) मध्यम पात्र है।
भावार्थ-जैनधर्म का पालन करने वाले व्यक्ति दो प्रकार के हैं (१) श्रावक (२) मुनि-बाह्याभ्यन्तर परिग्रह के त्यागी निर्ग्रन्थ साधु । अत: धर्म भी दो प्रकार का है। (१) गृहस्थधर्म (२) मुनिधर्म । गृहस्थ धर्म का यथाविधि उत्कृष्ट प्रकार पालन करने वाले पांच प्रण व्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाबत इस तरह बारह व्रतों से संयुक्त श्रावक अथवा श्राविका भी मध्यम पात्र हैं । जो सम्यग्दर्शन से सहित हैं वे ही पात्र कहे जाते हैं सम्यग्दर्शन के अभाव में अन्य गुणों का सद्भाव होने पर भी पात्रता नहीं रह सकती है । सभ्यम्दृष्टि वृत्ती श्रावक मध्यम पात्र है ऐसा प्रस्तुत श्लोक में बताया है ।।५५।।
सम्यग्दृष्टि जिनेन्द्राणां पादपद्मद्वयेरतः।
सत्पात्रं च जघन्यं स्याद्भाविमुक्तिवधूवरः ॥५६।। अन्वयार्थ-(च) और (जिनेन्द्राणां पादपद्मद्वयेरतः) जिनेन्द्र प्रभु के चरण कमल युगल में अनुराग एवं भक्ति रखने वाला (सम्यग्दृष्टि:) सम्यग्दृष्टि अन्नती श्रावक (भाविमुक्ति वैधवरः) भविष्य में मुक्ति रूपी वधू का वरण करने वाला (जघन्यं सत्पात्र) जघन्य सत्पात्र है।
भावार्थ-जिनेन्द्र भगवान के चरण कमलों में अनुराग एवं भक्ति रखने वाला सम्यग्दृष्टि अवती श्रावक भविष्य में मुक्ति रूपी वधू का वरण करने वाला जघन्य सत्पात्र
उक्तं च
उत्कृष्टपात्रमनगारमण वृताढ्यम् । मध्यम, व्रतेन रहितं सुदृशंजघन्यम् । निदर्शनं व्रत निकाय युतं कुपात्रम ।
युग्मोज्झितं नरमपात्रमिदं हि विद्धि ॥५७।। अन्वयार्थ - (अनगारं उत्कृष्ट पात्र) अनगार-निर्ग्रन्थ साधु उत्कृष्ट पात्र है (अण . व्रतात्यम मध्यम) अण -देशव्रती श्रावक मध्यम पात्र है। (अतेन रहितं सुशां) व्रत रहित अर्थात् ३ गुण ४ शिक्षाबत रूप ७ शीलवतों से रहित सम्यग्दृष्टि श्रावक जघन्यपात्र है । (निर्द