Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रोपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद]
भावार्थ-मंत्री राजा को कहता है कि हे राजन् ! यदि तुम अपनी या राज्य की रक्षा चाहते हो तो अहंकार को छोड़कर उस श्रेष्ठ गुणों के धारी, शक्ति से महान उन श्रीपाल महाराज की सेवा में तत्पर हो जाओ। ये श्रोपाल महाराज अापके द्वारा सेवने योग्य हैं ।१६०1
इत्यादि मत्रिभिः प्रोको श्रुत्वा सन्तुष्टभानतः।
प्रजापालः प्रशान्तोऽभूवग्नि, जलयोगतः ॥१६१।। प्रन्ययार्थ--(मत्रिभिः प्रोक्तं) मंत्रियों के द्वारा कहे गये (इत्यादि) उक्त वचनों को (श्रुत्वा) सुनकर (सन्तुष्टमानस:) सन्तुष्ट मन वाला (प्रजापाल:) राजा प्रजापाल (प्रशान्तोअभूत्) पूर्णतः शान्त हो गया (जलयोगतः अग्निः वा) जसे जल के योग से अग्नि शान्त हो जाती है।
भावार्थ-मंत्री के वचन सुनकर प्रजापाल राजा क्रोध रहित हो गया । मंत्री के बचन राजा के श्रोध रूपी अग्नि को शान्त करने के लिये जल के समान फलीभूत हुए अर्थात् जैसे जल के संयोग से जलतो हुई अग्नि तत्काल शान्त हो जाती है। उसी प्रकार मंत्री के बचनों से सन्तुष्ट मन बाला हुआ प्रजापाल प्रति शान्त हो गया ।।१६१।।
जगौ भो दूत यत्प्रोक्तं स्वामिना तेन ते ध्र वम् ।
तत्सर्व संकरिष्यामि याहि त्वं तन्निवेदय ।।१६२॥ अन्वयार्थ-- तदनन्तर राजा ने (जगी) कहा (भो दूत!) हे दूत (तेन स्वामिना) उस राजा श्रीपाल के द्वारा (यत प्रोक्तं) जो कुछ कहा गया है (ते ध्र वम् ) वे ध्र व रूप हैं अर्थात् सर्वथा मुझे मान्य हैं । (तत् सर्व) वह सब (संकरिष्यामि) सम्यक् प्रकार करूंगा (त्वं याहि) तुम जानो और (तत्) वह अर्थात् आदेश स्वीकृति रूप हमारा वचन (निवेदय) राजा को निवेदित करो।
भावार्य--प्रजापाल राजा ने पुनः शान्तचित्त से दूत को बुलाकर कहा कि तुम्हारे स्वामो महाराज श्रीपाल ने मेरे लिये जो आदेश पत्र दिया है वह मुझे पूर्णतः मान्य है तुम अपने स्वामी की आज्ञा ध्र व रूप से सफल जानो । मैं महाराज श्रीपाल के आदेश पत्र के अनुसार ही सर्व कार्य करूगा अतः तुम जानो और हमारी स्वीकृति रूप वचन अपने स्वामी को निवेदित करो ।।१६।।।
एवं दूतं च सन्मान्य वस्त्राद्यस्तं व्यसर्जयत् ।
सोऽपि गत्वा प्रभु नत्वा तत् सर्व संजगाद च ॥१६३॥
अन्वयार्थ-(एवं) इस प्रकार (वस्त्राद्य :) वस्त्रादि के द्वारा (सामान्य) सम्मान कर (तं दूत) उस दूत को (व्यसयत्) भेज दिया (च) और (सोऽपि) उस दुत ने भी