Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ोपाल चरित्र अष्टम परिच्छे ।
संस्थितो मुनिनादत्तं धर्मवृद्धया सुरक्रिया । सन्तुष्टोभूपतिर्गा मानसे सज्जनस्तह ॥१५॥ पुनर्नत्वा मुनिप्राह श्रीपालो विनयान्वितः । कृताञ्जलिरहो स्वामिस्त्वां सदा करुणाकरः ॥१६॥ भव्यपदमाकराणाञ्च प्रकाशन दिवाकरः ।
निस्पृहः श्री जिनेन्द्रोत सम्धान्बुिधिबन्द्रमाः ।। १७ ।। अन्वयार्थ - (मुनिना दत्तम्) मुनिराज के द्वारा दिये गये, (सुरश्रिया) स्वर्ग प्रादि सम्पत्ति को करने वाले (धर्मवृद्धया) धर्मवृद्धि रूप आशीर्वचन से (सज्जनैः सह) रज्जनों के साथ (संस्थितो भूपति) बैठा हुआ राजा (मानसे गाई सन्तुष्टो) मन में बहुत सन्तुष्ट हुआ। (कृताञ्जलिः) हाथ जोड़ हुए वे श्रीपाल महाराज कहने लगे (अहो) हे (स्वामिन्) स्वामी (त्वं सदा करूगाकरः) आप सदा करणा-या करने वाले हो (भपपद्माकराणाम् ) भव्य जोत्र रूपी कमलों के (प्रकाशन) विकाश के लिये (दिवाकरः) सूर्य के समान हो । (निस्पृह) निस्पृह हो (जिनेन्द्रोक्तं सद्धर्माम्बुधि चन्द्रमा) जिनधर्म रूपी समुद्र को वृद्धिंगत करने वाले चन्द्रमा के समान है।
भावार्थ-स्वर्ग आदि सम्पत्ति को देने वाला, मनिराज प्रदत्त धर्मवृद्धिरस्तु आशीर्वाद रूप बचन से, सज्जनों के साथ बठं हए श्रीपाल महाराज बहन सन्तुष्ट हए और हाथ जोडे हए कहने लगे, हे स्वामिन् ! आप सदा दया वा करूणा करने वाले हो, भव्य जीव रूपी कमलों को विकसित करने के लिये सूर्य के समान हो । अति निस्पृह हो और जिनेन्द्र कथित सद्धर्म रूपो समुद को वृद्धिंगत करने वाले चन्द्रमा के ममान हो ।।१५ मे १७।।
भगवन् कीडशोधर्मः कैस्साध्योऽत्रदयापरः । कि फलं तस्य भो नाथ सर्व त्वं वक्तुमर्हसि ॥१८॥ तन्निशम्य प्रभोर्वाक्यं मुनीन्द्रो धर्मतत्ववित । सजगाद शुभां बाणों सर्वपन्देह नाशिनीम् ॥१६॥ भाषिणों सर्वतत्वाना भानुभाइव निर्मलाम् ।
शीतला चन्द्रकान्ति वा परमाहाददायिनीम् ॥२०॥
अन्वयार्थ- (भगवन् ) हे प्रभ ! (दयापरः) दया प्रधान (धर्म:) जिन धर्म (कोरशो) कैसा है (अत्र) यहां, (बह धर्म) (केःसाध्यो) किसके द्वारा साध्य है (भोनाथ) हे स्वामी ! (तस्य कि फल ) उसका क्या फल है ? (सर्व) सव (त्वं ) ग्राम (बक्तु अर्हसि ) कहने में समर्थ हो। (प्रमो: तत वाक्यं निशम्य) राजा के उस वचन को सुनकर (धर्मतत्ववित ) धर्म के स्वरूप को जानने वाले (मुनीन्द्री) मुनिकुञ्जर ने (भानुभाइव) सूर्य की किरणों के समान