Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र सप्तम परिच्छेद 1
[ ४११
भावार्थ- दोनों पक्षों को शक्तिशाली देखकर मंत्रियों ने विचार किया कि नाना प्रकार के हजारों शस्त्रों से सहित सुभटों के द्वारा तथा विशाल- विशाल हाथी, घोड़े, रथ तथा पादाति सेनाओं के द्वारा होने वाला यह युद्ध विनाशकारी है, प्रजा का क्षय करने वाली है अतः उन दोनों पक्षों के राजाओं को, देवेन्द्रादि से समचित जिनाज्ञा प्रदान कर वहा कि हे राजाओं ! आप सम्यक प्रकारनं - 1 ४१ से ४३ ।।
जैतेश्वरं वचः पूतं सर्वप्राणिहितङ्करम् ।
ताश महतां गोत्रे युद्धं मम न युज्यते ॥ ४४॥ श्रतो मा प्रियतां लोको बराको भटः कोऽपि च ।
युद्धं युवां स्वसामर्थ्यात कुरुतं सेनया बिना ॥४५ ॥
अन्वयार्थ - ( सर्वप्राणिहितङ्करम् ) सभी प्राणियों का हित करने वाला ऐसा ( पूतं ) पवित्र (जैनेश्वरं वचः ) जिनेन्द्र भगवान का वचन है ( तादां महतां गोत्रे ) उस प्रकार के अर्थात् जिनेन्द्र प्रभु पवित्र कुल गोत्र में उत्पन्न हमारे बीच (युद्ध) विनाशकारी युद्ध होवे यह ( मम न युज्यते) मुझे ठीक नहीं जँचता है । ( अतो ) अतः ( वराको ) निर्दोष, निरपराध (लोको ) लांग (भटः कोऽपि च) और कोई भी भट ( मा प्रियतां ) न मरे इसके लिये (पुव:) तुम दोनों (सेनया दिना ) सेना के बिना (स्वसामर्थ्यात् ) अपनी सामर्थ्य से ( युद्धं कुरुतं ) युद्ध करो ।
भावार्थ -- जिनेन्द्र भगवान के बचन सभी प्राणियों का हित करने वाले हैं प्राणिमात्र काहित करने वाले उस पवित्र जिन कुल में उच्च गोत्र में उत्पन्न हिंसात्मक युद्ध होना मुझे अच्छा नहीं दीखता है अतः जिन कुल को पवित्रता को दृष्टि में रखकर और प्रजा की सुरक्षा हेतु आप दोनों ही परस्पर युद्ध करें। निर्दोष निरपराध सुभटों और प्रजाजनों का जिससे क्षय न होवे ऐसा, सेनाओं के बिना ही युद्ध करना, आप दोनों के लिये भी श्रेयकारी होगा । इस प्रकार मन्त्रियों ने दोनों पक्ष के राजाओं से निवेदन किया ||४४४५ ।।
युवयोरत्र मध्ये यो जयप्राप्नोति सङ्गरे ।
स्वामी स एव राज्यस्य किं साध्यं सुभदक्षयैः ॥ ४६ ॥ मल्लयुद्धं प्रयुद्ध ताम् युवां साम्प्रतमुत्तमौ
मन्त्रिवाक्यमिदं श्रुत्वा तौ द्वौ युद्धं प्रचक्रतुः ॥४७॥
श्रन्वयार्थ -- (अ) यहाँ ( युवयोः मध्ये ) तुम दोनों के बीच ( सङ्गरे) युद्ध में (यो)
जो ( जयप्राप्नोति ) विजयी होता है ( स एव राज्यस्य ) बही राज्य का (स्वामी) स्वामी होगा ( कि साध्यं सुभक्षयेः) सुभदों के क्षय से क्या प्रयोजन ? (साम्प्रत ) अतः अभी (उत्तमी) श्रेष्ठ (युवा) आप दोनों (मल्लयुद्ध ) मल्लयुद्ध ( प्रयुद्धेताम् ) करें ( इदं ) इस ( मन्त्रिवाक्यं ) मन्त्रि के वचन को ( श्रुत्वा ) सुनकर ( तो द्वी) उन दोनों ने (युद्ध) युद्ध ( प्रचक्रतुः ) प्रारम्भ किया |