Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ श्रपाल चरित्र सप्तम परिच्छेद मावार्थ - मन्त्रियों ने कहा कि हे प्रजापालक ? प्रजाजनों वा श्रेष्ठ सुभटों का विनाश न होवे इसके लिये आप दोनों ही परस्पर यह मल्ल युद्ध करें । उस मल्लयुद्ध में जो विजयी होगा वही राज्य का अधिकारी होगा। उन श्रेष्ठ राजाओं ने मन्त्रियों के वचन स्वीकार कर वहाँ परस्पर मल्लयुद्ध करना प्रारम्भ कर दिया ||४६ ४७ ।।
४१२]
मल्लयुद्ध तयोस्तत्र पादसंघातताडनः । धरातलं च प्रीत्येव रसातलमलं ययौ ।।४८ ।।
बाहुदण्डै: प्रचडैश्च दण्डिनोऽपि भयङ्करः । वल्गनैर्बलनेश्याऽपि प्रतारणरवैः परैः ॥४६॥
अन्वयार्थ --- ( तत्र ) वहाँ ( तयोः) उन दोनों के ( मल्लयुद्धे ) मल्लयुद्ध में ( पादसंघातताडनैः ) पादसंघात तथा पादप्रहारों से ( प्रोत्या एव) हर्ष वा प्रीति से ( घरातलं ) मानों पृथ्वो ( रसातलं ) रसातल का (ययो) चली गई (ग्रलं एवं ) बस, युद्ध की भयङ्करा का बोध कराने के लिये इतना ही कहना पर्याप्त है। ( दण्डिनोऽपि भयङ्करः ) दण्डे से भी अधिक कठोर वा भयकारी (प्रचण्ड : बाहुदण्ड ) प्रचण्ड भुजा दण्डों से (च ) और ( वल्गन बेलन) गरजने और पैंतरा बदलने से ( परः प्रतारणवः श्रपि ) और एक दूसरे के प्रतारण से उत्पन्न स्वरों से ( दोनों में भयंकर युद्ध होता रहा) |
भावार्थ- दोनों ही राजा अति बलिष्ट थे। दण्डे से भी अधिक भयकारी उनकी प्रचण्ड दोनों भुजाये थीं जिनसे वे एक दूसरे को प्रतारित कर रहे थे उस प्रतारण से भयङ्कर आवाज हो रही थी तथा उनके पाद प्रहार से ताडित पृथ्वी भी उनके शौर्य वीर्य से प्रीति को प्राप्त हुई । वस्तुतः धरातल को ही चली गई थी, ऐसा कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी अर्थात् उनका युद्ध अत्यन्त भयङ्कर था | अपनी सुरक्षा के लिये पंतरा बदलते हुए साथ में भयङ्कर गर्जना करते हुए मल्लयुद्ध करने वाले वे दोनों सुभट हृदय को कम्पित करने वाले थे ।
॥४८ ४६॥
मल्लयुद्ध चिरं तौ द्वौ चक्रतुर्भदसत्तमौ ।
यथादि चक्रवद्वाहुलिनौ बलशालिनी ॥५०॥
श्रन्वयार्थ - ( बलशालिनी) बलिष्ठ ( श्रादिचक्रवबाहुबलिनो यथा ) प्रथम चक्रवर्ती भरत और बाहुबली के समान ( तौ द्वौ ) वे दोनों (भटसत्तमौ ) श्रेष्ठसुभट ( चिरं ) चिरकाल तक (मल्लयुद्ध ) मल्लयुद्ध ( चक्रतुः ) करते रहे ।
भावार्थ - प्रथम चक्रवर्ती भरत और बाहुवली के समान वे दोनों सुभटोत्तम बहुत समय तक इसी प्रकार मल्लयुद्ध करते रहे ।। ५० ।।
एवं युद्ध ं विधायोच्चैः श्रीपालस्सुभटारिणः । बीरादिदमनं जित्वा बबन्धकिल पौरुषात् ।।५१॥