Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रीपाल चरित्र सप्तम परिच्छेद वा प्रमोद पूर्वक पुण्य कार्य को करने वाला हो अपनं समस्त इष्ट कार्यों को सिद्ध करने में समर्थ होता है ॥२॥
गहे गृहे तदा सर्वे सज्जनाः चित्तरञ्जनम् । चक्रमहोत्सवं दिव्यं गीतनृत्यादि मङ्गलैः ।।८।। रत्नचूर्ण चतुष्कश्च पट्रकुलादि वस्तुभिः ।
तदा चम्पापुरी रेजे निमिता सा महोत्सवैः ॥४॥ अन्वयार्थ (तदा) तव (गृहे गृहे) घर घर में (सर्वेसज्जनाः) सभी सज्जनों ने (गीत नृत्यादि मङ्गलै:) गीत नृत्यादि मङ्गल कार्यों से (चित्तरञ्जनम) चित्त को अनुरञ्जित करने वाला (दिव्य महोत्सव (चक्र :) किया (तदा) तब (रत्नच चतुष्कोः) चार प्रकार के रत्नमय चूर्णों से (च) और (पट्टकूलादि वस्तुभिः) रेशमी वस्त्रादि उत्तम बस्तुत्रों से (निर्मिता) सुसज्जित (सा चम्पापुरी) वह चम्पापुरी नगरी (महोत्सव:) महोत्सवों से (रेजे) सुशोभित
भावार्थ---श्रीपाल महाराज का राज्याभिषेक महाउत्सब पूर्वक सम्पन्न हुआ दघर घर में सभी सज्जनों ने गीत नत्यादि माङ्गलिक कायों के द्वारा जन-जन के हदय को अनुरञ्जित करने बाला महान् उत्सव किया । रत्नमयी चार प्रकार के चर्गों से और रेणमो वस्त्रादि उत्तम वस्तुओं से सुसज्जित वह चम्पानगरी नगरी वासियों के सुखकार महोत्सबों के द्वारा अत्यन्त शोभित हुई ।।८३, ८४||
एवं श्रीपाल भूपालः समादाय महोत्सवः । पित राज्य महापुण्य दानमानशत युतः ।।८।। निष्कण्टकं कृतानन्द प्रीरिणताखिल सज्जनाः । सर्वदेशेषु भूपालासहस्राणां विशेषतः ॥८६॥ मूदिनमालाभियोत्तुङ्गां स्वाज्ञा चक्रेषुशर्मदाम् ।
संस्थितस्सुखतो नित्यंसोदितो भूरिभूमिपैः ॥७॥ अन्वयार्थ—(एवं इस प्रकार (श्रीपाल भूपालः) श्रीपाल राजा (महोत्सव:) महोरसव पूर्वक (दानमानशतयुत:) सैकड़ों प्रकार के दानमान और सम्मान के साथ महापुण्यं) अतिपुण्यशाली (पितृराज्यं) पिता के राज्य को (समादाय) लेकर (प्रीरिगताखिलसज्जना) सभी सज्जनों के चित्त को प्रसन्न प्रमुदित करने वाली (सर्वदेशेषु) तथा सभी देशवासी (भशाला सहस्राणां) सेकड़ों राजाओं का (विशेषतः कृतानन्दं विशेषत: आनन्द पहुंचाने वाली
मूधिनमालां इव) गले में पड़ी हुई माला के समान (शर्मदा) सुम्बकर ऐसी (स्त्राज्ञा चक्रप) अपनो प्राज्ञा का प्रवर्तन करता था।