Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र षष्टम परिच्छेव]
[३८३ अनोखें अनुभव, अद्भुत घटनाएं, धन-जन प्रियादि लाभ की मनोरञ्जन कथाएँ सुनायीं। जिससे उन दोनों का मन अति प्रसन्न हुआ। इन कथाओं का कथन करते समय स्वयं स्थितप्रज्ञ था । क्योंकि तत्त्ववित को न आश्चर्य होता है न क्षोभ और न हर्ष-विषाद ही । अतः मध्यस्थभाव से उन दोनों सास-बहू को प्रसन्न किया ।।१२७।।
ततः प्रासाद भूगर्भ गत्वा मदनसुन्दरीम् ।
समालिड़.य च सम्भाज्य स चके सुखिनों तराम् ।।१२८॥
अन्वयार्ण--(ततः) तत्पश्चात् (प्रासाद) महल में (भूगर्भम ) अपने एकान्त शयनागार में (गत्वा) जाकर (मदनसुन्दरीम् ) मैंनासुन्दरी को (समालिङ्य) आलिङ्गन कर (च) और (सम्भाष्य) मधुर भाषण कर (सः) उसने (तराम ) अत्यन्त (सुखिनीम् ) उसे सुखी (चक्र) किया।
मावा-एकान्त पाते ही दोनों प्रेमियों का प्रेम उमड पाया। भूपाल श्रीपाल ने तत्क्षण अपनी प्रिया को बाहुपाश में ले लिया । श्रम से आलिङ्गान किया। पुबनादि से उसे चिरकाल वियोग का दम्ब विस्मत हो गया। मधर-मधर चाटकारी भाषण से, उसका सारा सन्ताप विलीन कर दिया । दोनों ही रतिक्रीडा में निमग्न हो गये । अनन्तर श्रीपाल ने अपने प्राप्त वैभव का परिचय दिया ।।१२८।।
पुनस्सैन्यश्रियं श्रुत्वा तदा मदनसुन्दरीम् । ता इष्टुमुत्सुफा मत्वा रात्रावेव भटाग्रणी ॥१२॥ तां समानीय थेगेन स्वसंन्यं सम्पदान्वितम् ।
दर्शयामास सद्रूपास्ताश्च सर्वाः स्वकामिनीम् ॥१३०॥
प्रन्वयार्थ—(पुनः) तदनन्तर (श्रियम् सैन्यम् ) सेना, वैभव को (श्रुत्वा) सुनकर (तदा) तब (ताम् ) उस सुन्दरी (मदनसुन्दरीम } मैंनासुन्दरी को (रष्टुम्) देखने के लिए ( उत्सुकाम् ) उत्कण्ठित (मत्वा) मानकर (रात्री) रात में (एव) ही (भटागणी) सुभटशिरोमणि (ताम) उसको (समानीय) लाकर (वेगेन) शीघ्र ही (सम्पदान्वितम्) वैभवसहित (स्वसैन्यम् ) अपनी सेना को (च) और (सर्वाः) सभी (सद पाः) सुन्दर रूपाकृत्ति (स्वकामिनी:) अपनी प्रियाओं को (ताम् ) उसे (दर्शयामास) दिखलाया।
भावार्थ-श्रीपाल ने अपनी सार सम्पदा, विशाल सेना और मधुरभाषिणी प्रियाओं का इस प्रकार वर्णन किया कि मैंनासुन्दरी उन्हें देखने को अधीर हो उठी । सुनते-सुनते ही वह उत्सुक और आतुर होने लगी। महाराज श्रीपाल की तीक्ष्ण ष्टि ने उसके मनोभावों को परख लिया । उसी समय रात्रि में ही अतिवेग से उस प्राण प्रिया को लेकर वह अपनी छावनी में प्रा पहुँचा । उस अभूतपूर्व सेना. अद्भुत सम्पदा के साथ रूप, यौवन, लावण्यमयी उसकी