Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्रीपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद]
[ ३५३ यादि नाम वाले (कुलस्य) कुल के (तिलकोपमाः) तिलक की उपमाधारी (शूराः) शूरबीर (बहवः) बहुत से (पुत्राः) पुष (बभूवुः) हुए हैं (वा) तथा (रूपसौभाग्यसदत्नखानयोः) रूप, सौभाग्य प्रादि रत्नों की खानभूत (सारमुगणोज्वला:) गुणों से मण्डित-उत्तम गुणों से शोभित (षोडश) सोलह-१६ (प्रतानि) सौ (सुताः) पुत्रियाँ (प्रोक्ताः) कहीं हैं।
भावार्थ उस राजा के हिरण को आदि लेकर अनेक शूरवीर गुणज्ञ पुत्र हैं। मानों वे कुल के तिलक स्वरूप हैं । सभी कुल दीपक हैं। इसी प्रकार सौन्दयं की खान, गुणों को भण्डार और उभयकुल विकासिका १६०० सोलह सो हितकारी कन्याएँ हैं । सभी पुत्रियाँ गुएरा यौवन सम्पन्न हैं ।।२६-३०।।
प्राया सौभाग्य गौरी, सा पुत्री श्रृंगार गौर्यपि । पुत्री पौलोमी तृतीया, रण्णादेवी तथा परा ॥३१॥ सोमाख्या पञ्चमी पुत्री, लक्ष्मी षष्ठी च पधिनी। सप्तमी चाष्टमी चन्द्र रेखा, चाष्टौ विचक्षणाः ॥३२॥ सर्व विज्ञान सम्पन्नास्सर्वशास्त्र परायणाः । सत्कलापमिनि श्रेणिप्रकाशे वा रवि प्रभाः ॥३३॥ तन्मुख्यास्ता जगुश्चैवं योऽस्माकं पूरयिष्यति । समस्याः कोऽपि सच्छ रः होऽस्माकं पतिरेव च ॥३४॥ सर्वासांसार कन्यानां नान्यः कोऽपि प्रियो ध्र वम् । इत्याकर्ण्यवचस्तस्याः श्रीपालः प्रभुसत्तमः ॥३५॥ गत्वा तत्र समालोक्य ताः कन्यकास्संजगौ प्रभुः । स्वाभिप्रायमहो कन्या ब्रूहि धन्या यथेप्सितम् ॥३६॥ समस्या पूरयिष्यामि युष्माकं शर्मदायकाः ।
तन्निशम्य क्रमेणौच्चैः प्रोचुस्ताः स्वमनोगतम् ॥३७॥ अन्वयार्थ आगे भृत्य कहता है उन कन्याओं में (आद्या) प्रथम (सा) वह (पुत्री) पुत्री (सौभाग्यगौरी) नौभाग्यगौरी, (शृङ्गारगौरी) श्रृगारगौरी (तृतीया) तीसरी (पुत्री) कन्या (अपि) भी (पौलोमी) पौलोमी (तथा) तथा (परा) चतुर्थी (रपादेवी) रण्णादेवी (पञ्चमी) पांचमी (पुत्री) कन्या (सोमाख्या) सोमानामको (च) और (षष्ठी ) छटवीं (लक्ष्मी) लक्ष्मी (सप्तमी) सातवीं (पद्मिनी पद्मिनी (च) और (अष्टमी) प्रारवीं (चन्द्ररेखा) चन्द्ररेखा (च) और (अष्टी) आठों ही (विचक्षणा:) विचक्षणा-चतुरा (बा) मानों (सत्कला पद्मिनिश्रेणो) उत्तमकला रूपी कमलिनियों की पंक्ति को (प्रकाशे) विकसित करने में (रविप्रभा:)