Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ श्रीपाल चरित्र षष्टम परिच्छेद भावार्थ-इसके बाद रण्णादेवी बोली, "वे मानसिंह उत्तम है" इस पहेली को हे महापुरुष पूर्ण करिये । अपनी सुक्ष्म बुद्धि का परिचय दीजिये । उसके प्रत्युत्तर में महामति बह श्रीपाल कहने लगा, जो मनुष्य शील-सदाचार बिहीन हैं वे पशु हैं मनुष्य नहीं तथा जो व्रतशीलाचारादि मण्डित हैं गुणों से उज्ज्वल हैं, हे पवित्रे वे मनुष्यों में सर्वोत्तम नरसिंह हैं : प्रथवा बह मनुष्य मानवों में केशरी होता है ।।४६-४७।।
द्वितीय पाठ के उत्तर में श्रीपाल जी कहते हैं कि पुरुष हो या स्त्री जो रत्नत्रयमम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक पारित्र से युक्त है, तपशीलादि द्वारा जो पवित्र है उज्ज्वल है, बहो पुरुषकेशरी (नरसिंह) कहा जाता है ॥४८||
सोमोवाच पदहीवं सद्धर्म नियते मया श्रीपालो निजबुद्धयेदं, सुक्त पावत्रयं व्यधात् ॥४६।। लक्षणर्दशभियुक्तो दयामूलस्तपो ,युतः।
मुक्तिवः केवली प्रोक्तस्सद्धर्म क्रियतेमया ॥५०॥ पुनश्च:--अहिंसा लक्षणोपेतो विश्वश्री शिवशर्मवः ।
जिनोदितस्सतां सेव्यस्सधर्मः क्रियतेमया ॥५१॥ पादक सम्पदाख्यात्यत्सान दृष्टोमया महान् । शेषपादत्रयं दक्ष उवाचेदं स्वबुद्धितः ॥५२॥ यो धत्ते ध्यानमात्मज्ञः स्वस्य द्वीपाब्धि संस्थितौ । स्वनिन्दा नान्यनिन्दाश्च स न हष्टोमया महान् ॥५३॥
(ददृशे न मया शक इति च पाठ,) परानिन्दो गुणग्राही करुणा रसिकोऽपि यः ।
भ्रमन पि जगद्विश्वं दहशे न मया शकः ॥५४।। अन्वयार्थ - (सोमा) सोमा (उवाच) बोली (हि) निश्चय ही (इदम्) यह (पदम्) पद ("सद्धर्मक्रियते मया") सद्धर्म मेरे द्वारा किया गया, (श्रीपालः) श्रीपाल (निजबुद्धया) अपनी बुद्धि से (युक्तम्) योग्य (इदम् ) यह (पादत्रयं) तीनपाद (व्यधात्) रखता है बनाता है कि जो (दशभिः) दश (लक्षणैः) लक्षण से (युक्तः) सहित (दयामूल:) दया रूपी मूलवाला (तपः युतः)तप सहित (मुक्तिदः) मुक्ति देने वाला (केवलीप्रोक्तः)सर्वज्ञ कथित (सः) बह (सद्धर्मः) श्रेष्ठधर्म (मया) मेरे द्वारा (क्रियते) किया गया। पुनश्च-फिर भी (अहिंसालक्षण उपेतः) अहिंसा लक्षण सहित (विश्व श्री) सांसारिक वैभव (शिवशर्मदः) और मोक्ष सुख देनेवाला (जिनोदितः) जिनभगवान प्रणीत (सताम्) सज्जनों से सेवनीय (सः) बह (धर्मः) धर्म (मया) मेरे द्वारा (क्रियते) किया गया ।।५१।।