Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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३.१४ ]
[ श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद (सुतः) पुत्र हो (वत्स ) हे बच्च ! (श्रीपाल:) श्रीपाल (भा) हे पुत्र (क्व ) कहाँ गतोऽसि ) चले गये।
भावार्थ: उम नीच पापी धवल सेठ ने पुनः निरपराध विचक्षण उस श्रीपाल को मरवाने का असफल प्रयास विचारा। जैसे हो वैसे इसे मृत्युघाट उतार देना चाहिए । इस प्रकार मन में सोचकर मन्त्रियों को बुलाया। यथा राजा तथा प्रजा के अनुसार उन लोभी दुराचारियों ने भी उसके षड्यन्त्र को कार्यरूप करने की सलाह दी। फलत: सर्वजन से यह निर्णय किया कि चाण्डालों-नत्यकारों को बुलाया जाय । ये नट लालची होते हैं, नाना रूप बनाने में पद होते हैं। राजा भी न त्यगानादि का प्रिय है। ये लोग प्रथम अनेक प्रकार से नान, मायें, वजायें, नाना प्रकार से अपनी नट कला के प्रदर्शन करेंगे। राजा प्रसन्न हो इन इनाम देगा । इस कार्य के लिए बह अवश्य ही श्रीपाल को पारितोषक वितरण की आज्ञा देगा । वस, ये लोग उसे देखते ही चिल्लायें कि हे वेटा, हे भाई, हे सुत, हे मामा, भो भर्त्ता तुम कहाँ च गये ! क्यों रुष्ट हुए ? हम लोग रा-रो कर पागल हो गये इत्यादि कह-कह कर रोयेंगे-चिल्लायेंगे । राजा इसका कारण पूछेगा तो ये स्पष्ट कह देंगे कि श्रीपाल हमारा पुत्र है, जातीय है इत्यादि । बस राजा अब प्रय ही ऋद्ध हो उसे मृत्यु दण्ड दे देगा क्योंकि उसकी पुत्री को भांड ने व्याह लिया यह धर्मात्मा नीतिज्ञ राजा को महन न हो सकेगा । इस प्रकार मन्त्रणा कर उसने उसी समय चाण्डालों-नटों को बूलबाया और एकान्त में उन्हें भले प्रकार अपना मन्तव्य अत्रगत कराया। उसने उनसे कहा-भो नटराजो! आप नत्य, गान और उछल-कूद में पूर्ण निपूण हो। आप सर्व प्रथम राजदरबार में बड़ी चतुराई से अपना कौशल कला-विज्ञान प्रशित करना पूनः अपना जाल अत्यन्त सावधानी से बिछाना । यदि फन्दा सोधा डाला तो समझ लो तुम्हारा दुःख दारिद्रय पलायन बार जयेगा। तुम श्रीपान को अपना बेटा कहना, स्वयं को पिता बताना । इसी प्रकार सब जन सम्बन्ध जोड-जोड़ मायाबी आँसू बहाना । बस काम बन जायेगा ।।१२० १२१।।
सिद्धे कार्ये च युष्मभ्यं दास्येऽहं भूरिसो धनम् ।
श्रीपाल प्रारगनाशार्थ तानेवं प्राह पापकृत् ॥१२२।। अन्वयार्थ - (कार्ये) काम के ( सिद्धे) सिद्ध होने पर श्रीपालप्राणनाशार्थम) श्रीपाल के प्राणनाश के लिए (युष्मभ्यम्) तुम लोगों को (भूरिसः) बहुत सा (धनम) धग (प्रहम् ) मैं (दस्ये) दूगा (एवम्) इस प्रकार (च) और (पापकृत्) पापी (प्रा) बोला ।
भावार्थ-इस प्रकार धवल सेठ ने उन्हें भलीभांति समझा दिया और आश्वासन दिया कि श्रीपाल के मर जाने पर मैं तुम्हें ययेच्छ धन दंगा । मुह मांगा द्रव्य देकर मालोमाल बना दुमा । तुम कोई चिन्ता मत करो ॥१२२।।
तेऽपि नीचा धनाथं च लम्पटाः कपटाः खलाः। राजाने वेगतो गत्या कृत्वा राग मनः प्रियम् ।।१२३।।