Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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. [ श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छे:
व्यापारी धवल सेठ प्राया है । वह रत्नव्यापारी है । उसी के जहाज में मेरी प्राणवल्लभा है । वह विद्याधर राजा की पुत्रो है । उसका नाम मदनमञ्जूषा है । वह मेरा कुल वृत्तान्त अच्छी तरह जानती है । यदि तुम्हें जानना ही है तो वहाँ जाओ और सब कुछ ज्ञात करलो। "डबते को तिनके का सहारा" कहावत के अनुसार गुणमाला अपने पतिदेव के मुखपङ्कज से मुनते ही अविलम्ब शिविका (पालको) में सवार हो गई । हत्यारों को प्रादेश दिया "मैं जब तक बापिस न पा जाऊँ तुम मेरे प्राणनाथ का प्रारीर भी स्पर्श नहीं करना ।" अति वेग से कुछ ही क्षरगों में शिविका सागर तट पर जा पहुँची, बैठे-बैठे ही उच्च स्वर से पुकारा, बहिन मदनमञ्जूषा आप कहाँ, हैं, किधर हैं ? शोन बोनिये, मेरा अजेण्ट कार्य है। आयो, अपना मुखकमल दिखाओ। शोकाकलित, दखात स्वर सुनकर मदनमजपा का सूखा घाव हरा हो गया । दुखिया ही दुखिया का दुःख समभ सकता है । समान दुःख होने पर उसकी सीमा भी बढ़ जाती है । पतिवियोग की पीड़ा से पीडित वह खेद-खिन्न विचारती है यह सन्तापित नारी कौन होगी ? खैर, जो हो पूछना चाहिए । यह विचार वह पोत मे बाहर पायी और अत्यन्त बिनम्र एवं शान्तभाव से उस अपरिचिता से आने का, अपने परिचय नामादि के जानने का कारण पूछा । गुणमाला ने अश्रुविगलित नयनों से उसकी ओर निहारा और मुखाकृति से ही अपने हृदय की टोस का उसे परिचय करा दिया । तथा गद्गद् कण्ठ बोलो, हे सखि, हे प्रियभागिनी ! अविलम्ब आप मुझे श्रीपालकन्त का कुलक्रम बताओ । मेरे पतिदेव की जाति-वंश क्या है ? शीघबताओं हे बहिन ! मदनमजा , यदि मेरे वापिस लौट ने में विलम्ब हुआ तो न जाने प्रियकान्त का क्या होगा ? अतः आप शीघ्र ही आओ और मेरे पिता के समक्ष समस्त वृतान्त ययर्थ कहो। इस प्रत्याग्रह से चकित मदनमञ्जषा ने पूछा हे भगिनी ! यह श्रीपाल कौन है ? यहाँ कैपे माया ? कब आया ? जरा यह भी बतलाओं ? ||१४२ से १४६।।
ततो नृपात्मजावादीतीयोऽम्बुधिमागतः ।
स्व भुजाभ्यामहं तस्मै दत्ता मज्जनकेन भो ॥१४७॥ अन्वयार्थ (ततः) मदनमञ्जूषा के पूछने पर (नृपात्मजा) राजपुत्री गुणमाला (अवादीत्) बोली (यः) जो (स्व) अपनी (भुजाभ्याम ) भजाओं से (अम्बुधिम् ) सागर को (तो.) तरकर (आगतः) पाया (भो) हे सखि ! (मत) मेरे (जनकेन) पिता ने (अहम्) मैं (तस्मै) उसके लिए (दत्ता) दे दी गई।
___ भावार्थ - श्रीपाल कौन है ? इस प्रकार पूछने पर वह राजपुत्री गुणमाला बोलो. सुनो बहिन, यह श्रीपाल स्वयं अपने हाथों से सागर को तैर कर आये थे। पूर्व में मुनि द्वारा भाषित वाणी के अनुसार मेरे पिता ने उसके साथ मेरा पाणिग्रहण संस्कार कर दिया । अत्यन्त वैभव और उत्साह से विवाह हो जाने पर उसे अपने भाण्डागार पद पर नियुक्त कर लिया।
वदन्ति तस्य चाण्डालाश्चाण्डालिजातिकायतः । ततो भूपतिना दत्तो भूत्यानां मारणाय सः ॥१४॥