Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद ]
अन्वयार्थ (तावत्) तब तक (राजा) राजा ने (मापाण ) उन चाण्डालों द्वारा (खलम्) मूर्ख (श्रेष्ठिनम् ) धबल सेठ को (समाहूय) बुलवाकर (अादी) प्रथम (अशुचौ) अपवित्र (अमेध्य) विष्टा (भूते) भरे (कुण्डे ) कुण्ड में (तस्य) उस सेठ का (पाणानाम् ) नटों का (मज्जनम् ) मज्जन-स्नान (अकारयत्) कराया जाय (पुनः) फिर (ऋथा) निर्दयता रो (शिरोमुण्डनम्) मूड मुडाना (स्वराणाम ) गधा (आरोहणम्) आरोहण (अपि) भी (अकारयत्) कराया जाय (ततः) तदनन्तर (तैः) उन दुष्ट नर्तकों (समम् ) के साथ (तम्) उस दुराचारी धवल के (अंधि) पैर (हस्त) हाथ (च) और (कर्णादि) कान आदि (कर्तनैः) काट कर मारना (इति) इस प्रकार (कोपानल) कोपरूपी पाग से (समन्वित:) सहित (राजा) नृपति ने (अदण्डयत्) दण्ड दिया (एवं) तथा (हन्तुम्) मारने को (आरभते) तैयार हुमा ।
भावार्थ-इधर राजा ने उन चाण्डालों को बुलवाया और साथ ही उस दुराचारी, मागी धवल होदा को भो । नगाग्नि से दाय रजा ने उन्हें अत्यन्त कठोर मृत्युदण्ड तो घोषित किया ही परन्तु यह दण्ड भयङ्कर यातनानों के साथ दिया जाय । अर्थात् प्रथम इन दुष्टों को विष्टा से पूरित गर्त में डुबाओ, पुनः शिर मुण्डन करा गधों पर चढानो, दोल वजाकर घुमायो फिर सबके हाथ-पैर कान, नाकादि प्रथक्-प्रथक अवयवों को कटवाना चाहिए । कोपानल से कम्पित गात जिसका, अरुण हो गई है याखं जिसकी ऐसे उस राजा न मारने को
को और मारने वालों ने भी अपना कार्य कोलाहल के साथ प्रारम्भ कर दिया। चारों ओर भयङ्कर कोलाहल मच गया ।।१८५ से १८७।।
तदा कोलाहलं श्रुत्वा, काहलादिकमुत्कटम् ।
श्रीपालस्सुदयालुत्वात् समागत्य महीपतिम् ।।१८।। अन्वयार्थ-(तदा) तब (कोलाहलम् ) शोर गुल (श्रुत्वा) सुनकर (काहलाादकम् ) झांझ आदि के (उत्कटम्) उच्चस्वर-पावाज को (श्रुत्वा ) सुनकर (सुदयालुत्दाद्) अनुकम्पा. भाव से (श्रीपालः) कोटीभट श्रीपाल (महीपतिम् ) राजा के पास (समागत्य) पाकर ।
जगौ धर्मपिता मेऽयं हन्यते न महीपते । इत्याग्रहेण तं शीघ्र श्रेष्ठिनं धवलं खलम् ॥१८॥ मोचयित्वा कृपाशूरः प्रेषयामासतत्पदम् ।
सत्यं सन्तः प्रकुर्वन्ति सर्वेषां सर्वतो हितम् ॥१६॥ अन्वयार्थ - (जगी) कहने लगा (महीपते ! ) भो भूपाल (अयम् ) यह धबल सेठ (मे) मेरा (धर्मपिता) धर्मपिता (न हन्यते) नहीं मारना चाहिए (इति) इस प्रकार (आग्रहेण) आग्रह कर (तम ) उस (स्थलम ) दुर्जन (धवलम.) धबल (अष्टिनम ) सेठ को