Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद
[२६५ अहो स्वामिन् क्व तिष्ठामि क्य गच्छामीति साम्प्रतम् । यूथभ्रष्टेव सारङ्गी विरहानल वेष्टिता ॥७१।। हा हा ! स्वामिन् क्व पश्यामि त्वां मे प्राणप्रियं प्रभो। नाथ सान्धकारा क्व भूमिश्चनिशा वा चन्द्रजिता ।।७२।। पद्मानीव गतच्छाया भास्करेण विना भुवि । जाताऽहं त्वां विना नाथ पादपेनविनालता ॥७३॥ हा मया मुनिसन्तापः कृतो वा पूर्व जन्मनि । तेन पापेन हा नाथ विगोगस्तेऽजनिभ्र वम् ॥७४॥ कि वा कस्याश्च कामिन्या वियोगो विहितो मया । मिथ्याभावेन वा दग्धं काननं वह्निना धनम् ॥७५।। इत्येवं सा प्रकुर्वाणा रोदनं शोक पूरितम् ।
अश्रुपात प्रवाहेण स्नाता वा दुःख सागरे ॥७॥ अन्वयायं-(अहो) हे (स्वामिन्) प्राणाधार (साम्प्रतम्) इस समय (यूथभ्रष्ट) अपने झण्ड से बिछडी (सारङ्गी) मृगी (इव) समान (विरहानल) विरह रूपी अग्नि से (वेष्टिता) घिरी मैं (क्व) कहाँ (तिष्ठामि ) बैठू (क्व) (गच्छामि) कहाँ जाऊँ (इति) इस प्रकार यहाँ (चन्द्रवजिता) चाँदरहित (निशा) रात्रि है (वा) अथवा (च) और (सान्धकारा) तमतोम से आच्छादित (भूमि) पृथ्वी है (नाथ) हे स्वामिन् (मे) मेरे (प्राणप्रियम्) प्राणाधार (प्रभो) स्वामिन् (हा हा) हाय हाय (त्वाम् ) तुमको (क्व) कहाँ (पश्यामि) देखू (नाथ) हे वल्लभ ! (त्वाम्) आपके (बिना) बिना (अहम्) मैं (भुबि) संसार में (भास्करेण) सूर्य विना (पद्मानि) कमलों (इव) सदृश (गतच्छाया) मुरझाई, (पादपेन) वृक्ष के (बिना) रहित (लता) बल्लरी (इव) समान (जाता) हो गई हूँ। (हा) हे भगवन् (मया) मेरे द्वारा पूर्वजन्मनि ) पूर्वभव में (मुनिसन्तापः) मुनि को सन्तापित किया गया क्या' (नाथ) हे नाथ (तेन) उसी (पापेन) पाप से (हा) कष्टपूर्ण (ते) आपका (वियोग) वियोग (ध्र बम्) निश्चय ही (अजनि) उत्पन्न हुआ है क्या (बा) अथवा (किंवा) क्या (कस्या) किसी (कामिन्या:) कामिनी का (मया) मेरे द्वारा (वियोग:) वियोग (विहितः) कराया गया (किं) क्या (वा) अथवा (मिथ्याभावेन) मिथ्यात्व के उदय से (घनम् ) सघन (काननम्) अटवी (वह्निना) अग्नि से (दग्धम्) जलाया गया ? (इति) इस प्रकार (एव) नाना प्रकार से (शोकपूरितम्) महाशोक से भरा (रोदनम्) रुदन (प्रकुर्वाणा) करती हुयी (सा) वह मदनमञ्जूषा (अश्रुपातप्रबारणेन) प्रांसुओं को अविरलधारा प्रवाह से (दुःखसागरे) दुःखरूपी रत्नाकर में (वा) मानों (स्नाता) डूब गई।