Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेव
अस्तु जन कोलाहल सुन कर
मदनमञ्जूषा को ज्ञात हो गया कि उसका प्रायोश्वर श्रीपाल सागर के अथाह जल में जा गिरा। यह विदित होते ही उसे मानों वज्र प्रहार हुआ। वह
तिलमिला उठी, व्याकुल हो गई। जिस प्रकार बिजली गिरने से लता वृक्ष का श्रावार छोड़ भूमि में लोट जाती है। उसी प्रकार इस आकस्मिक वज्रप्रहार से मदनमञ्जुवा संज्ञाशून्य हो वसुन्धरा की गोद में जा पड़ी। संसार में मां की ममता प्रसिद्ध है। माता सच्ची रक्षिका होती है यही समझ कर मानों धरा माँ में अपने असा दुःख को समेट छपना चाहती हो। उसके भूमि पर पडते ही नौका में भगदड मच गयी ।
अध
यहाँ वसुधा या भूमि से अभिप्राय नाच की ही आधार भूत जगह समझना क्योंकि यह सब कुछ जहाज में ही हो रहा है । इधर-उधर से उसकी सखियाँ, सेविकाएँ दौड़ पड़ीं। कोई शीतल जल सेचन करने लगी, कोई चन्दन, उशीर छिड़कने लगी तो कोई पंखा झलने लगी । इस प्रकार नानाविध उपचार कर शीघ्र ही उसे सचेत कर लिया, किन्तु दुःख तो उद्वेलित हो उठा । मूर्च्छासखी ने मानों उसे तीव्र दुःख की दाह से बचाने का उपाय किया था । किन्तु इन सखियों ने उसे भगाकर पुनः इसके दुःख को उदीरित कर दिया। परन्तु यह भी है कि दुःख विखर कर फैल जाता है ओर उसका आघात लघु हो जाता है। इसीलिए उसकी हितैषिणी सखियों ने उसे सचेत किया और वह भी गला फाड़-फाड़ कर अपना सन्ताप वितरण करने लगी ।। ६६ ६६ ।।
हा नाथ क्व गतोसि त्वं मां विहायात्र सागरे । चक्रवाकोमि काकि महाभयशतङ्करे ||७०।।
अन्वयार्थ --चह्न मदनमञ्जूषा बिलखने लगी (हा ) हाय (नाथ) हे स्वामिन् (महाभयशङ्करे) सैकडों प्रकार के भयों को उत्पन्न करने वाले ( सागरे ) समुद्र में ( एकाकम् ) अकेली (चक्रवाकी) चकवी ( इव) के समान ( माम्) मुझको ( विहाय ) छोड़कर ( त्वम् ) आप ( क्व) कहाँ (गतोसि ) चले गये हैं.
भावार्थ --- मदनमञ्जूषा का धैर्य बांध टूट गया। उसका हृदय क्षत-विक्षत हो गया । उसे चारों ओर अन्धकार और भय भासने लगा। वह कहने लगी, हे स्वामिन्, आप कहाँ हैं, हाय हाय मुझे अकेलो छोड़कर आप कहाँ गये । यह सागर महा भयङ्कर है। सर्वत्र सैकड़ों भयों से भरा पड़ा है । कहीं कोई रक्षक नहीं । इस दशा में मैं नवा की सदृश एकाकी अकेली किस प्रकार रह सकूंगी । चक्रवाक् बिना जैसे चक्रवो निराकुल नहीं रह सकती उसी प्रकार आपके बिना मेरा जीवन नहीं रह सकता । हाय हाय अब मैं क्य करू ? आप कहाँ हैं, अपना पता तो बताओ आप किधर गये ? || ७० ॥