Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रोपाल चरिय चतुर्थ परिच्छेद]
[२३१ स्वामी के पास आने का आग्रह किया। श्रीपाल ने सोचा यहाँ अपना तो कोई है नहीं, जानपहचान भी नहीं । ये आग्रह कर रहे हैं तो क्यों न चला जाय ? तैयार हो गया । वे लोग भी उस सुमनोज्ञ नरोत्तम को लेकर धवल सेठ के पास आये । सेठ भी उस महापुरुष, सज्जनाकृति देखकर प्रसन्न हुआ ।।५५-५६-५७।।
ताम्बलासन सद्वस्त्रैः श्रेष्ठी सन्मान्य सञ्जगौं ।
अहो त्वं दृश्यसे कोऽपि महानत्र महीतले ॥५६॥
अन्वयार्थ - (श्रेष्ठी धवल सेठ ने (आसन) बैठने को आसन (ताम्बूल) पानसुरारी, (सद्) उत्तम (वस्त्र:) वस्त्रों द्वारा (सन्मान्य) सम्मान कर (सजगा) बोला (अहो) हे भद्र (त्वम् ) आप (अत्र) यहाँ (महीतले) भूलोक में (क:) कोई (अपि) भी (महान् ) महापुरुष (दृश्यसे) दिखलाई पड़ते हो ।
भावार्थ--घवल सेठ ने उस श्रीपाल का अत्यन्त सत्कार किया । आदर से उसे बैठने को योग्य आसन प्रदान किया । योग्य सुन्दर वस्त्र, अलङ्कार आदि प्रदत्त कर भोजन करा पान-सुपारी, इलायची, लवङ्गादि प्रदान को । तथा बोला, हे मनोज ! पुरुषोत्तम आप भूमण्डल पर कोई महापुरुष प्रतीत होते हैं । आप गुणज्ञ और अति सुभग हैं ।।५।।
पोतान् समुद्र तीरस्थाश्चालय त्वं सुधीर्मम् । चालयामि भणित्त्वेति श्रीपालस्सुमहोत्सवैः ॥५६॥ शमेदिने शुभे लग्ने समभ्यर्च्य जिनेश्वरान् । स्मृत्वा पञ्चनमस्कारान सर्वसिद्धि विधायकान् ॥६०।। सिद्धेभ्योऽपि पुनर्नवा यावत्संस्तुत्य पाणिना।
पोतान् हंकार नादेन चालितो भट सत्तमः ॥६॥त्रिकुलम्
अन्वयार्थ (सुधीः) हे बुद्धिमन् (त्वम्) श्राप (समुद्रतीरस्थान ) समुद्र के किनारे स्थिर (मम) मेरे (पोवान्) जहाजों को । चालय) चलाओ (श्रीपाल:) श्रीपाल बोला (सुमहोत्सर्वः) महा उत्सव पूर्वक (चाल यामि) चलाता है (इति) इस प्रकार (भग्गित्वा) कहकर (जिनेश्वरान) जिनेन्द्र भगवान को (समभ्यय) भावपूर्वक पूजकर (सर्व) सम्पुर्ण (मिद्धि। शिद्धियों को (विधायकान्) देने वाले (पञ्चनमस्कागन् पञ्चपरमेष्टियों को (स्मृत्वा ) स्मरण करके (शुभदिने) शुभ दिन (शुभे लग्ने) शुभ लग्न में (पुतः) फिर से (अभि) भी (सिद्धेभ्यः) सिद्धों के लिए (नत्वा ) नमस्कार करके (संस्तुन्य) स्तुति करके (यावत) जैसे ही (भट:) बीर (सत्तमः) महासुभट श्रीपाल (पाणिना) हाथों से स्पर्श करता है कि (हार) हुं हूं इस प्रकार शब्द के साथ (चालिताः) चला दिये।
भावार्थ--धबल सेठ ने श्रीपाल का अत्यन्त स्वागत किया । भोजन-पान कराया।