Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रीपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद
का श्रम सफल हुआ । धर्म के प्रभाव से क्या नहीं होता ? असंभव भी सम्भव हो जाता है। सिद्धभगवान के ध्यान से योगीजन संसार सागर को पार कर मुक्तिनगर में जा बसते हैं । अनन्त गुणरत्नों के आगार अक्षय अनन्त सुख के पात्र हो जाते हैं, फिर इस सागर को तैर कर पार करना कौन बड़ो चोज है । अटल जिनशासन को भक्ति सकल दुःखों को विनाशक होतो है । अनाद्यनिधन महामन्त्र का प्रभाव अचिन्त्य है ।।३२, ३३॥
सत्यं पञ्चनमस्कारः प्रभावः केन वर्ण्यते ।
जलं स्थलायते येन वह्निश्वापि जलायते ॥३४॥
अन्वयार्य--(सत्यम् ) यथार्थ ही (पञ्चनमस्कारः) पञ्चनमस्कार मन्त्र की (प्रभावः) महिमा (केन) किसके द्वारा (वर्ण्यते) वर्णित हो सकती है (येन) जिसके द्वारा (जलम ) जलराशि-समुह (स्थलागते) निदेर हो गाता है (क) गौर (वह्नि) अग्नि (अपि) भी (जलायते) जलरूप परिणम जाती है ।
भावार्थ-महामन्त्र णमोकार की शक्ति अद्भुत है, इसका प्रभाव अचिन्त्य है । जो व्यक्ति शुद्ध मन से इसकी आराधना करता है, जपता है, ध्यान करता है उसके असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं, जल के स्थान में स्थल और अग्नि के स्थान में जल हो जाता है। श्रोपाल को इसी ही मन्त्रराज के प्रभाव से भीषण उदधि स्थल' समान हो गया । कृष्ण को ले जाते समय वलदेव जी को यमुना का उत्ताल जलसमूह पक्की रोड़ बन गई । महारानी सती सोता देवी का अग्निकुण्ड सागर जंसा विशाल सरोवर बन गया, कमल प्रफुल्लित हो गये, सिंहासन रच गया । सुदर्शन सेठ को तलवार का वार फूल माला बन गयी। क्या अपार प्रभाव वर्णित हो सकता है ? ।।३४।।
सिद्धयन्ति सर्वकार्याणि मन्त्रराज प्रसादतः । पाप राशिः क्षयं याति भास्करेणेव सत्तमः ॥३५॥ सिंह व्याघ्रादयः क्रूराः पशवः प्राणहारिणः । तेऽपि सर्वप्रशाम्यन्ति त्यक्तवैराः स्वभावतः ॥३६॥ दुःखदारिद्यदौर्भाग्य राज्यसङ्कट रोगजम् । भयं श्चाऽपियशंयाति शान्तिस्सम्पद्यते यतः ॥३७।। कुक्कुरोऽपि सुरोजातो यत्प्रभावेन भूतले। चोरश्चाऽपि दिवं याति प्रसिद्धमिदमद्भुतम् ॥३८।। राक्षसा व्यन्तरा क्रूरामन्त्रेणतेन सर्वथा । मुक्तवैराश्च ते नित्यं सेवां कुर्वन्ति सादराः ॥३६।।