Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ोपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद दुःखियों का दुःख नष्ट होगा । कारण कि पुण्य सञ्चय और पाप संक्षय का यह अमोघ मन्त्र है ।।३४,से ४६।।
इति मन्त्र प्रभावेन पत्तनं दलवर्तनम् । स श्रीपालो यदा प्राप तदा तत्र महीपतिः ।।४७॥ विख्यातो धनपालाख्यो वनमाला प्रिया सती। तयोः पुत्रास्त्रयो जाता विख्यातास्ते स्वपौरुषः ॥४६॥ मनोहरस्सुतो ज्येष्ठः सुकण्ठश्चापरोमतः
श्रीकण्ठस्तृतीयो ज्ञेयस्त्रयस्ते कुलदीपकाः ॥४६॥ ' अन्वयार्थ- (इति) इस प्रकार (मन्त्रप्रभावेन) उस अपराजित मन्त्र के प्रभाव से (यदा) जिस समय (सः) वह (श्रीपाल :) श्रीपाल (दलवर्तनम) दलवर्तन (पत्तनम्) द्वीप को (प्राप) प्राप्त हुआ (तदा) उस समय (तत्र) वहाँ द्वीप में (विख्यातः) प्रसिद्ध (धनपाल:) धनपाल (आख्यः) नामबाला (महीपतिः) राजा (सती) शीलवती (वनमाला) धनमाला (प्रिया) भार्या (तयोः) उन दोनों के (श्रयः) तीन (पुत्राः) पुत्र (जाता) हुए (ते) वे पुत्र (स्व पौरुषैः) अपने पुरुषार्थ (विख्याता:) विख्यात हुए (ज्येष्ठः) बडा (सुत्तः) पुत्र (मनोहरः) (ज्येष्ट:) प्रथम (सुतः) पुत्र (मनोहरः) मनोहर (अपरः) दूसरा (सुकण्ठः) सुकण्ठ (च) और (तृतीयः) तोसरा (श्रीकण्ठः) श्रीकण्ठनाम का (ज्ञ यः) जानना (ते) वे (त्रयः) तीनों (कुलदोपकाः) कुल के प्रदीप (मतः) माने जाते थे ।
भावार्य -अतीव पुण्य और अपराजित महामन्त्र के प्रभाव से थका मादा श्रीपाल कोटिभट दलवर्तन रत्नद्वीप के किनारे जा लगा । नया जीवन मिला भूख प्यास से क्लान्त अत्यन्त श्रमित तट पर स्थित वृक्ष को सघन छाया में विश्राम हेतू लेट गया । उस समय उस द्वीप का नरेश धनपालथा । उसको प्रिय भार्या का नाम बनमाला था । वे दोनों धर्मात्मा और न्याय-नीति सम्पन्न थे। उनके तान पूत्र थे। प्रथम-सबसे बड़ बेटे का नाम मनोहर था, दूसरे सूत का नाम सूकण्ठ और तीसरा पुत्र श्रोकण्ठ नाम से विख्यात था। ये तीनों ही यथा नाम तथा गुण थे। क्षत्रियोचित रूप लावण्य, विद्या कला विज्ञान एवं अपने पुरुषाथ से यशस्वी थे । सर्वत्र प्रसिद्ध थे । तीनों ही कुल प्रकाशक दीपक थे । अर्थात् अपने कुल, वश परम्परा के संरक्षण में पूर्ण समर्थ थे। ।।४७, ४८, ४६।।
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