Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रोपाल चरित्र पञ्चम परिच्छेद
श्रीमन् श्रीपाल महाराज ने इसी धर्म के प्रसाद से भयङ्कर सङ्कटों को पवन से उड़ाये गये सूखे पत्रों के समान क्षण मात्र में उड़ा दिया। बिना किसी श्रम के बिना उपाय किय ही सारभूत नाना प्रकार की अनेक अपरिमित विभूतियों के साथ कन्यारम प्राप्त किया ससार सुख की खान, अनेक गुण मण्डित, शील धुरंधर, धर्मज्ञा, कुलकमल विकाशक अंशुभाली, पतिभक्ता पत्नी को प्राप्त किया, यह सब धर्म का ही माहात्म्य है। प्राचार्य कहते हैं ऐसा वह जिन राजभगवान जयवन्त हों जिनक प्रवर्तित धर्म संसार उद्धारक और परमधाम मुक्ति का भी एक मात्र सधक है ।।१६७।।
इति श्रीसिद्धचक्र पूजातिशय समन्वित धीशलमहाराज चरिते भट्टारक थी सफलकीति विरचिते श्रीपाल मदनमञ्जूषा विवाह व्यावर्णनं नाम चतुर्थ: