Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिमोद तत्प्रभावं समालोक्य श्रेष्ठी हृष्टो जगाद तम् ।
त्वं भो वीर ! महाख्यातो लक्षणः पौरुषेण च ॥६६॥ अन्वयार्थ--(तत्प्रभावम् उस श्रीपाल के प्रभाव को (समालोक्य ) देखकर (हृथ्ट :) प्रसन्न (श्रेष्ठी) धवल सेठ (तम) श्रीपाल से (जगाद) बोला (भो) हे (वीर ! ) सुभाशिरोमरिण (त्वम्) आप (लक्षण: शुभलक्षणों से (च) और (पौरुषेण) उत्तम पुरुषार्थ मे (महात्यात:) महान विख्यात हैं।
सत्यं त्वं क्षत्रियोत्पन्नो महासुभट शिरोमणिः ।
सर्व कार्य सहस्रेषु शूरोप्याहतु मां महान् ।।६७।। अन्वयार्थ – (सत्यम्) वास्तव । (त्वम्) आप (महासुभटः) महाबीर के ( शिरोमणि:) अग्रेसर (क्षत्रियोत्पन्न:) क्षत्रियवंश में उत्पन्न होने वाले हो, (सर्वकार्येसहस्रषु) सम्पूर्ग हजारों कार्यों में (शूरः) बोरगी भी (, मुमन बर्तुम् पुष्ट करने को (महान्) महान हो।
त्वं मे पुत्र समो धीमन् मया सह समागच्छसाम्प्रतम् ।
यत्त भ्यं रोचते चित्त तत्त दास्यामि निश्चितम् ॥६॥ अन्वयार्य - (धीभन्) हे बुद्धिमन् (त्वम्) आप (मे) मेरे (पुत्र) बेटा (सम) समान हो (साम्प्रतम्) इस समय (मया) मेरे (सह) साथ (समागच्छ) आइये (यत्) जो - (तुभ्यम् ) तुम्हारे लिए (चित्तं ) मन में (रोचते) अच्छा लगेगा (तत्) वही (ते) तुम्हें (निश्चितम्) निश्चय से (दास्यामि) दूंगा।
भावार्थ---श्रीपाल के इस अद्ध त प्रभाव को देखकर धवल सेठ हर्ष में प्रफुल्ल हो गया । उसका हृदय उछलने लगा । बह प्रसन्न चित्त हो श्रीपाल से कहने लगा पाप अपने शुभलक्षणों और उत्तम पुरुषार्थ से महा विख्यात मालूम होते है। निश्चय हो या सभटशिरोमणि, क्षत्रिगपूत्र हो । मैं हजारों कार्यों में निधरणात हूँ परन्तु आपने मुझे भी परास्त किया है। मेरे आकर्षण के पाप केन्द्रबिन्दु हैं । मैं आपसे अत्यन्त प्रसन्न और प्रभावित हूँ। पाप प्राज से मेरे लिए पुश्रवत् हो । अब पाप मेरे ही साथ व्यापारार्थ पाइये । प्राप जो चाहेंगे मैं वही आपको प्रदान करूंगा । आप महान बुद्धिशाली, गुणज्ञ, धर्मात्मा और वीर हैं । शुरशिरोमरिण ! आप अवश्य ही मेरे साथ चलें ।।६।।
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