Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद]
[२३५ अस्त्येवं प्रतिपद्योच्चैः श्रेष्ठिवाक्यं भटोत्तमः।
सार्ध तेन समारुह्य श्रीपालश्चालितो मुदा ॥६६॥ अन्वयार्थ—(श्रेष्ठीवावयम् ) धवल सेठ के वाषयों पर(उच्चैः) पूर्णतः (प्रतिपद्य:) विश्वस्त हो (भटोत्तमः) बीराग्रणी श्रीपाल ने (एवं) इसी प्रकार (अस्तु) हो, (मुदा) प्रसन्न (धीपाल.) श्रीपाल (ग) उसके साथ साथ (समारुह्य) जहाज में प्रारूढ हो (चालितः) चल दिया।
भावार्थ-धबल सेठ का प्राग्रह देखकर श्रीपाल भी विश्वस्त हो गया। उसने स्वीकृति प्रदान की । उस वीर शिरोमणि ने आनन्द से धवल सेठ के साथ जहाज पर आरोहण किया । अर्थात् उसके साथ चल दिया ।। ६६ ।।
नानावस्तु सहस्राणि समादाय प्रहर्षतः।
अनेकणिजां पुत्ररनेकर्भट सत्तम, ॥७०॥ अन्वयार्थ- (सहस्राणि) हजारों (नाना) अनेक प्रकार की (बस्तु) वस्तुएँ (समादाय) लेकर (प्रहर्पतः) प्रानन्द से (अनेकैः) अनेकों (वाणिजाम् ) व्यापारियों के (पुत्रः) पुत्रों के (अनेकः) अनेकों (भटसत्तमैः) उत्तम सुभटों के साथ तथा--
प्रोतुङ्ग कुप्य वस्त्राधमहारक्षकनायकैः ।
शस्त्रयादित्र संघातश्चालितौ सुखतश्च तौ ॥७१॥ अन्वयार्थ - (प्रोत्तुङ्ग) उन्नत (महारक्षक ) विद्वान रक्षा करने वाले (नायक:) नेता, (कुष्यवस्त्राय:) नाना जाति के वस्त्र (शस्त्र) हथियार (वादित्र) बाजे प्रादि (च) और भी सामान ले (तो) वे दोनों (सुलतः) सुखपूर्वक (चालितौ) चले ।
भावार्य- महान योग्य रक्षक नायकों, वस्त्र, पात्र, शस्त्र-अस्त्र यादि अनेक प्रकार की अनेकों सामग्रियों को संग्रहीत कर वे दोनों सुख पूर्वक व्यापारार्य चल दिये ।।०१।।
गच्छन्तस्ते प्रपश्यन्ति दिशिकेचिच्च तारकम् ।
कोचिज्जल प्रमायणंच ब्र वन्ति स्म भटोत्तमाः ॥७२॥ अन्वयार्थ-(ते) वे लोग (गच्छन्तः) जाते हुए (केचित्) कोई (दिशि) दिशाओं में (तारकम् ) ताराओं को (प्रपश्यन्ति) देख रहे हैं (च) और (के चित्) कोई (भटोत्तमाः) भट श्रेष्ठ (जलप्रमाणम् ) नीर के प्रमाण को (ब्र बन्तिस्म) कह रहा था-वर्णन कर रहा था।
भावार्थ - जहाजों में सवार भद्रवीर पुरुषजन नाना प्रकार से विनोद करते जारहे थे । कोई दिशाओं का अबलोकन कर रहे थे तो कोई तारा समूहों के निरीक्षण का मानन्द ले